Monday 6 November 2017

आज मैंने खिड़की से सच्चा हिंदुस्तान देखा


गिलहरी की फुर्ती देखी, मोर का गुमान देखा,
शांत सरोवर और मचलता तूफ़ान देखा,
गाँव देखे,खेत देखे, लहराता खलिहान देखा,
रामू देखा, डेविड देखा, गुरविंदर, रहमान देखा,
पसीने से तरबतर खेत में किसान देखा,
वहीं नंगे बदन दौड़ता, नन्हा अरमान देखा,
आज मैंने खिड़की से सच्चा हिंदुस्तान देखा.

झोपडी में रौनक देखी, सूना मकान देखा,
बेरंग जीवन और जीवंत शमसान देखा,
शहर मुश्किल देखे, गाँव आसान देखा,
कहीं धूप देखी, धुँआ देखा,
तो कहीं कुदरत का अहसान देखा,
सड़क पर बिलखता इंसान देखा,
पत्थर में भगवान देखा,
आज मैने खिड़की से सच्चा हिन्दुस्तान देखा.
बेफिक्र बचपन देखा, यौवन हैरान देखा,
कंगाल राजा और फ़कीर धनवान देखा,
हंसों का अपमान देखा, कौओं का सम्मान देखा,
लालच देखा, लोभ देखा, तो पुण्य और दान देखा,
नफरत को हँसते देखा, मोहब्बत को परेशान देखा,
दिलों में पत्थर देखे, पत्थर पर दिल का निशान देखा,
आज मैंने खिड़की से सच्चा हिन्दुस्तान देखा.
    -आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...