Monday, 14 October 2019

गा रही है चांदनी...

दरमियां सारे फासले, मिटा रही है चांदनी,
चांद लिख रहा है 'प्रेम' , गा रही है चांदनी,

सच देखेगी तो सच से डर जाएगी दुनिया,
दाग़ चंद के इसलिए छिपा रही है चांदनी।

अंधेरे से न टकराकर, गिर पड़ें नन्हें सितारे,
आसमां में इक चांदनी, बिछा रही है चांदनी।

रातभर जलकर थके उन दीपकों की खातिर
नई सुबह को फिर बुलाने, जा रही है चांदनी।

तुम्हारी आंखों को सब यहां, देख रहे हैं ऐसे,
तुम्हारी आंखों से ही जैसे, आ रही है चांदनी।

- आदर्श जैन

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