Friday 29 November 2019

इल्हाम

मुझे सही सही तो नहीं पता,
कि कैसी होती होगी 'मौत',
पर शायद,
इस शब्द से बेखबर,
किसी नदी के,
सागर में समा जाने जैसी होती होगी 'मौत'।
देह मिल जाती होगी अपनी 'नियति' में,
मगर आज़ाद रहती होगी,
'आत्मा'।

मुझे सही सही तो नहीं पता,
कि कैसी होती होगी 'आत्मा',
पर शायद,
किसी स्वच्छंद पंछी के,
आकाश में उड़ने जैसी होती होगी 'आत्मा'।
चाहती होगी परमसत्य में विलीन होना,
मगर धरा पर लौट आती होगी ढूंढ़ने,
'इल्हाम'।

मुझे सही सही तो नहीं पता,
कि कैसा होता होगा 'इल्हाम',
पर शायद,
तेल खत्म हो जाने के बाद भी,
किसी दिए में,
प्रकाश के रहने जैसा होता होगा 'इल्हाम'।
और फिर न कभी मौत होती होगी,
न होती होगी कभी,
धरा पर लौटने की,
'आवश्यकता'।

इल्हाम -> enlightenment

- आदर्श जैन

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