सूरज का प्रकोप था, अलसाई दोपहर थी,
आजकल जंगल में भी परिवर्तन की लहर थी.
जंबो हाथी, घंसू घोड़ा, मीकू खरगोश, बजरंगी बन्दर,
लम्पट लंगूर, गिल्लू गिलहरी और बाकी सभी जानवरों की टोली,
जंगल के राजा शेरखान से जाकर बोली,
हे पशुपुंगव, हे प्राणनाथ, हे जंगलाधिराज !
अनुमति हो तो कुछ कहें महाराज !
कलयुग में भी इतना सम्मान,
गुर्रा कर बोले शेरखान,
'डरो मत dare करो,
कहना क्या चाहते हो, share करो'
"महाराज के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम !"
पीछे से बोला एक बन्दर, जयराम !
"दरअसल बात ऐसी है महाराज,
जैसे जैसे ये जंगल समाप्त हो रहे हैं,
हमारे मनोरंजन के साधन खो रहे हैं,
कल ही की बात हैं महाराज,
मेरा वो पसंदीदा पेड़ भी काट दिया,
जिसपर मैं रोजाना छलांग लगाता था,
अब तो वो तालाब भी सूख गया है,
जिसमें आधा जंगल समाज नहाता था.
सभी जानवर बोर होते हैं, बस कहने से डरते हैं,
रातें तो किसी तरह गुजर जाती हैं, दिन नहीं गुजरते हैं.
इसलिए अगर मानी जाए मेरी राय,
तो जंगल में एक कवि सम्मलेन का आयोजन कराया जाए.
इससे जंगल की सभी कवि प्रतिभाओं को मंच मिलेगा,
और निश्चित ही इस मायूसी में उल्लास का एक फूल खिलेगा"
शेर खान को बेहद पसंद आया ये विचार,
"कल कवि सम्मलेन का आयोजन होगा,
जाओ जाकर फैला दो ये समाचार"
तो शेरखान के फरमान पर,
सभी जानवर पहुंच गए तय स्थान पर.
दूर दराज के इलाकों से भी मेहमान आने लगे,
तो जाहिर है स्वभावानुसार भगदड़ भी मचाने लगे.
"खामोश ! खामोश ! खामोश !"
मंच से बोला कार्यक्रम का संचालक मीकू खरगोश.
"सभा में उपस्थित सभी खासो-आम,
आप सभी को मीकू खरगोश का प्रणाम !
भाईयों-बहनों, कार्यक्रम को ख़ास बनाने के लिए,
आप सभी को बहलाने के लिए,
हज़ारों कवि प्रतिभाओं में से चुनी गईं हैं शीर्ष चार,
जिनके नाम हैं कुछ इसप्रकार,
चिन्दी चूहे, आशिक अजगर, उस्ताद ऊँट और सातंगी सियार !
कविजनों से निवेदन है कि भावनाओं में न बहें,
कोशिश करें कवितायें छोटी ही रहें,
क्यूंकि कुछ श्रोता तो फैमिली के साथ आये हैं,
तो कुछ ऐसे भी हैं जो अंडे-टमाटर साथ लाये हैं.
तो चलिए कव्वाली से करते हैं कार्यक्रम का आगाज़,
और इसके लिए चिन्दी चूहों को देते हैं आवाज़"
चिंदी चूहों ने सबसे पहले शेरखान को माला पहनाई,
और फिर अपनी कव्वाली कुछ ऐसे सुनाई -
" हजरात ! हज़रात ! हज़रात !
आगे वाले हज़रात, पीछे वाले हज़रात, हज़रात गौर फरमाइए,
किसने सोचा था, ऐसा भी हो जाएगा हिंदी में,
कि शेर भी शेर सुनने आएगा हिंदी में,
जंगल कि बची खुची आबरू की कसम,
कि आज बड़ा मज़ा आएगा हिंदी में !"
'तो चूहों की इस धमाकेदार प्रस्तुति के बाद,
बैठ जाइए अपनी कमर कस के,
क्यूंकि हमारे अगले कवि हैं श्रृंगार रस के !
ये आशिक अजगर हैं और इनका,
अपने पेड़ के सामने वाले बिल की नागिन से टांका भिड़ा है,
क्यूंकि ये प्यार intercast है इसलिए,
लड़की का बाप इनसे चिढ़ा है.
तो दास्ताँ सुनाने अपने दिलवर की,
अगली आवाज़ होगी आशिक अजगर की !'
"क्यूँ खामोश हो इतना, बहाना भूल आया हूँ,
नशे में जो गुजरा था, ज़माना भूल आया हूँ,
मुझे शराबी मत कहना कभी ये जंगल वालों,
मैं एक नागिन की आँखों में लहराना भूल आया हूँ."
' तो इस मनमोहक प्रस्तुति के बाद माहौल को थोड़ा गंभीर बनाते हैं,
और राजस्थान से आये, वीर रस के कवि उस्ताद ऊँट को बुलाते हैं'
अपनी बाते सुनाने के लिए इन्होने पहले भीड़ को शांत कराया,
फिर जंगल की पीड़ा को अपनी कविता में कुछ ऐसे सुनाया -
"मन तो मेरा भी करता है, झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ, मैं,
जंगल की प्रशंसा में बासंती गीत सुनाऊँ मैं,
मगर मेघ-मल्हारों वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं,
जंगल की नग्न्ता ढंकने आवरण कहाँ से लाऊँ मैं,
मैं दामन में दर्द तुम्हारे अपने लेकर बैठा हूँ ,
हरियाली के, खुशहाली के सपने लेकर बैठा हूँ,
जंगल की इस हालत के जो भी ज़िम्मेदार हैं,
उनकी ही सरकारें हैं, उनके ही अखबार हैं,
जो हमको बर्बादी की इस हद तक लाने वाले हैं,
हम सबकी कब्रों पर महल बनाने वाले हैं!
इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी,
जंगल के हमदर्दों पर घात नहीं हो सकती थी,
ये लिखने से पहले मेरी कलम रो जाती है,
कि रोज़ जंगल में कोई नई प्रजाति खो जाती है,
अब हम वो इंद्रधनुष वाला ज़माना भूल गए,
मोर नाचना भूल गए, पंछी गाना भूल गए,
आगे का मंजर और डराने वाला है,
सुना है इंसान चाँद पर बस्ती बनाने वाला है,
फिर किसे अपना दोषी ठहराओगे,
अपने लिए नया जंगल कहाँ से लाओगे !
बस यही समझाने आया हूँ,
मैं जंगल की पीड़ा के गीत सुनाने आया हूँ"
'तो वीर रस की इस प्रस्तुति के बाद,
कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए,
आप सभी को हसाने के लिए,
बुलाता हूँ हास्य के अनूठे फनकार को,
आखिरी कवि के रूप में आमंत्रित करता हूँ, सतरंगी सियार को !'
सतरंगी सियार ने बड़ी हिम्मत से जैसे-तैसे,
कहा कुछ ऐसे -
"शेरखान - शेरखान आप मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं,
न जाने क्यूँ इतना रहम खा रहे हैं,
जरूर दाल में कुछ काला है,
लगता है जंगल में चुनाव आने वाला है"
-आदर्श जैन