Monday 25 May 2020

पाँव जीवित थे हमारे...


राह वो मुश्किल बड़ी थी,
आपदा सम्मुख खड़ी थी,
हम मगर चलते रहे थे,
दर्द को छलते रहे थे।

सोचकर अब से हसेंगे,
क्रूर किस्मत के सितारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

शहर से इक भोर उठकर,
आ गए थे हम सड़क पर,
वेदना, पीड़ा, उपेक्षा,
और लेकर गम सड़क पर,
उम्र भर की साधना का,
सोचते क्या फल मिला था,
भूख से बच्चे हमारे,
तोड़ते थे दम सड़क पर।

लाद जीवन बोझ सर पर,
हम खड़े आशा किनारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

कौन सुनता याचनाएं,
शोक सुनने कौन बैठे,
सब सियासी लोभ पाले,
रोटियां खा मौन बैठे,
डूब जाने से उचित था,
सांस थामे युद्ध करना,
देखते इकलव्य को पर,
मूक बनकर द्रोण बैठे।

हौंसला लेकर उठे थे,
कर्म कौशल के सहारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...