कहने को तो पास मिरे कहने को ही अल्फ़ाज़ नहीं,
ऐसा पर नामुमकिन है, शब्द नहीं तो जज़्बात नहीं,
कुछ ख्वाबों की इच्छा है बादल के ऊपर उड़ने की,
इन ख्वाबों की किस्मत में पर, कोई भी परवाज़ नहीं।
तेरी सांसों में अब मेरी सांसो की भी खुशबू है,
मेरे भीतर भी केवल अब मेरी ही आवाज़ नहीं।
बोसा देकर रंग चुरा लूं, इतनी ही चालाकी है,
दिल की तेरे पीर चुरा लूं, इतना भी चालाक नहीं।
क्या? तेरे ख्यालों के बाहर भी इक दुनिया होती है!
अच्छा! होती होगी! खैर मुझे इसका अंदाज़ नहीं।
- आदर्श जैन