Sunday 10 January 2016

भूत का प्रेमपत्र

मेरी प्राण-प्यासी चुड़ैल,
तू ही बता, तुझे क्या मैं कहूँ जानेमन,
भूतनी कहूँ, पिशाचनी कहूँ या कहूँ सिर्फ डायन.
आशा करता हूँ कि तू भी किसी शमसान में बैठी होगी ,
या किसी पीपल के पेड़ से लटक रही होगी,
या फिर मेरी तरह ही इधर उधर कहीं भटक रही होगी.
अब सीधे-सीधे अपने दिल की बात कहता हूँ,
कि दिन-रात ही बस तेरे बारे में सोचता रहता हूँ.
कि जब रात काली होती है, हवेली खाली होती है,
जब सिर्फ मैं जगता, ये सारी दुनिया सोती है,
तब तू मेरे सपनो में छन-छन करती आती है,
पटक-पटक कर मेरा दरवाजा खटखटाती है,
मगर तेरी ये मधुर आवाज़ मेरे कानो में नहीं घुलती,
तेरी लाख कोशिश के बाद भी मेरी नींद नहीं खुलती.
फिर तू मेरी खातिर अपने दिल को समझाती है,
मुझे नींद से जगाने हेतु आने नाख़ून चुभाती है.
ऐसा लगता है जैसे ये मच्छर मुझे क्यूं काट रहे है,
शायद अपनी frustation मेरे साथ बाँट रहे है.
फिर सोचता हूँ कि मैं अभी किसके विचारों में खोया था,
कल रात तो मैं All-Out लगा के सोया था.
फिर जब हौले-हौले अपनी आँखे खोलता हूँ,
तुझे देखता हूँ टुकुर-टुकुर पर मुख से कुछ न बोलता हूँ,
मैं तेरे दिल में अपने लिए प्यार देखता हूँ,
तेरे हाथों  में लालटेन, आँखों में अंगार देखता हूँ.
तेरे ये बिखरे बाल और सफ़ेद साड़ी वाला लुक मुझे भा जाता है,
तेरा ये ख़ौफ़नाक रवैया मेरे दिल में समा जाता है.

ऐसे रोज मेरे ख्वाबों में, होती है तुझसे मेरी मुलाकात ,
सोचता हूँ तभी कह दूं, तुझसे अपने दिल की बात.
न जाने किससे मैं डरता हूँ, क्यूँ मैं कायर बन जाता हूँ,
पर जब बात होती है दिल की तो मैं शायर बन जाता हूँ.
“मैं तुझसे मोहब्बत बेशुमार करता हूँ,
पूरे भूत संसार में ना किया होगा किसी ने,
इतना मैं तुझे प्यार करता हूँ.
और तू मेरे दिल में कुछ इस तरह समाई है,
जैसे सरसो के खेत में भैंस घुस आयी है”

सबकी नज़रों से हूँ ओझल, बस तुझे ही मैं दिखता हूँ,
तेरी याद में ओ डायन तुझे खत ये लिखता हूँ .

– तेरा प्रिय भूत

WRITTEN BY: ADARSH JAIN

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