एक पेड़ की छांव में ,
धूप से हताश होकर,
बैठ गया एक मुसाफिर,
सफर से उदास होकर।
तभी बोला एक तोता,
पास ही के शजर से,
कि ये नहीं वो मंज़िल है,
जिसे पाने निकले थे घर से।
ये कामयाबी नहीं है वो,
असल मुकाम हुज़ूर और है,
जिस सुकून को खोज रहे हो,
वो बस कुछ दूर और है।।
हिम्मत जुटाई, हौंसला पाया,
चल पड़ा आगे मुसाफिर,
बहुत दूर तक निकल आया,
पीछे न देखा मुड़कर फिर।
पर जाना कहां था भूल गया,
'बस कुछ दूर और' याद रहा,
आगे बढ़ने की कश्मकश में,
सफर उसका बर्बाद रहा।
चलते चलते जाने कब,
वो पार जीवन के आ गया,
फिर वही शजर और वही तोता,
बैठा उस पर पा गया।
तोते से अब पूछा उसने,
मेरी मंज़िल कहां है आखिर,
कहां मेरा अंतिम ठौर है,
तोते ने फिर वही कहा उससे,
बस कुछ दूर, बस कुछ दूर,
बस कुछ दूर और है।
- आदर्श जैन
धूप से हताश होकर,
बैठ गया एक मुसाफिर,
सफर से उदास होकर।
तभी बोला एक तोता,
पास ही के शजर से,
कि ये नहीं वो मंज़िल है,
जिसे पाने निकले थे घर से।
ये कामयाबी नहीं है वो,
असल मुकाम हुज़ूर और है,
जिस सुकून को खोज रहे हो,
वो बस कुछ दूर और है।।
हिम्मत जुटाई, हौंसला पाया,
चल पड़ा आगे मुसाफिर,
बहुत दूर तक निकल आया,
पीछे न देखा मुड़कर फिर।
पर जाना कहां था भूल गया,
'बस कुछ दूर और' याद रहा,
आगे बढ़ने की कश्मकश में,
सफर उसका बर्बाद रहा।
चलते चलते जाने कब,
वो पार जीवन के आ गया,
फिर वही शजर और वही तोता,
बैठा उस पर पा गया।
तोते से अब पूछा उसने,
मेरी मंज़िल कहां है आखिर,
कहां मेरा अंतिम ठौर है,
तोते ने फिर वही कहा उससे,
बस कुछ दूर, बस कुछ दूर,
बस कुछ दूर और है।
- आदर्श जैन
No comments:
Post a Comment