क्यूँ ओढ़कर सदा झूठा लिबास रहा जाए,
उदासी का दौर है, क्यूँ न उदास रहा जाए,
न कोई मजलिस, न दुनिया, न शोर शराबा,
अपनी खातिर सही, अपने पास रहा जाए।
बुझ गई फिर कैसा मकसद, किसकी चाह,
मज़ा तो है जब जलती हुई प्यास रहा जाए।
मारते - मारते चोंच, कभी तो टूटेंगी सलाखें,
क़फ़स में किसी परिंदे का विश्वास रहा जाए।
रहकर अजनबी भी निभाये जाते हैं ताल्लुक़,
हमदर्दी होने ज़रूरी नहीं कि खास रहा जाए।
क्यूँ चाहते हो भरा होना, हवा से या पानी से,
क्या बुरा है कि अगर खाली गिलास रहा जाए।
- आदर्श जैन
उदासी का दौर है, क्यूँ न उदास रहा जाए,
न कोई मजलिस, न दुनिया, न शोर शराबा,
अपनी खातिर सही, अपने पास रहा जाए।
बुझ गई फिर कैसा मकसद, किसकी चाह,
मज़ा तो है जब जलती हुई प्यास रहा जाए।
मारते - मारते चोंच, कभी तो टूटेंगी सलाखें,
क़फ़स में किसी परिंदे का विश्वास रहा जाए।
रहकर अजनबी भी निभाये जाते हैं ताल्लुक़,
हमदर्दी होने ज़रूरी नहीं कि खास रहा जाए।
क्यूँ चाहते हो भरा होना, हवा से या पानी से,
क्या बुरा है कि अगर खाली गिलास रहा जाए।
- आदर्श जैन