Sunday 26 April 2020

उदास रहा जाए...

क्यूँ ओढ़कर सदा झूठा लिबास रहा जाए,
उदासी का दौर है, क्यूँ न उदास रहा जाए,

न कोई मजलिस, न दुनिया, न शोर शराबा,
अपनी खातिर सही, अपने पास रहा जाए।

बुझ गई फिर कैसा मकसद, किसकी चाह,
मज़ा तो है जब जलती हुई प्यास रहा जाए।

मारते - मारते चोंच, कभी तो टूटेंगी सलाखें,
क़फ़स में किसी परिंदे का विश्वास रहा जाए।

रहकर अजनबी भी निभाये जाते हैं ताल्लुक़,
हमदर्दी होने ज़रूरी नहीं कि खास रहा जाए।

क्यूँ चाहते हो भरा होना, हवा से या पानी से,
क्या बुरा है कि अगर खाली गिलास रहा जाए।

 
- आदर्श जैन

Saturday 4 April 2020

ऐ कबूतर! तेरे हाथों...

ऐ कबूतर, तेरे हाथों खुदा को पैग़ाम करना हैं,
ये कैद से हमें आज़ाद करे, हमें काम करना है,

नींद आती है तो अब, बेचैनी से जाग उठते हैं,
हम जो कहते थे ज़िंदगी भर आराम करना है।

एक बात ये कि अगले पल का भी ऐतबार नहीं,
एक बात और कि सालों का इंतजाम करना है।

सुनते हैं कुदरत की नाराज़गी का कहर टूटा है,
बुजुर्गों की बातों का अब से एहतराम करना है।

लादकर जो ख्वाबों को कंधों पर, चले जा रहे हैं,
सारी मंजिलें हीं उन मुसाफिरों के नाम करना है।

ऐसे वक्त में भी जो बनकर ढाल, सामने खड़े हैं,
ऐसे फौलादियों को खड़े होकर सलाम करना है।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...