Saturday 4 April 2020

ऐ कबूतर! तेरे हाथों...

ऐ कबूतर, तेरे हाथों खुदा को पैग़ाम करना हैं,
ये कैद से हमें आज़ाद करे, हमें काम करना है,

नींद आती है तो अब, बेचैनी से जाग उठते हैं,
हम जो कहते थे ज़िंदगी भर आराम करना है।

एक बात ये कि अगले पल का भी ऐतबार नहीं,
एक बात और कि सालों का इंतजाम करना है।

सुनते हैं कुदरत की नाराज़गी का कहर टूटा है,
बुजुर्गों की बातों का अब से एहतराम करना है।

लादकर जो ख्वाबों को कंधों पर, चले जा रहे हैं,
सारी मंजिलें हीं उन मुसाफिरों के नाम करना है।

ऐसे वक्त में भी जो बनकर ढाल, सामने खड़े हैं,
ऐसे फौलादियों को खड़े होकर सलाम करना है।

- आदर्श जैन

No comments:

Post a Comment

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...