Sunday 21 June 2020

जीवन तेरी शर्तों में..

जैसे बीतीं सारी विपदा,
ये संकट भी टल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

आंधी में इस बार कि माना,
सब टूट गए घर संबल के,
नूर भरी कुछ आंखों में भी,
कैसे भीषण सपने झलके,
जब जब सिसकी धरती पहले,
नभ ने रोकर प्यास बुझाई,
लगता है अब सारे आंसू,
जैसे सूख गए हैं बादल के।

निश्चित है इस मुश्किल में भी,
रहकर सहज निकल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

भावी जीवन अस्थिर है और,
घाव हरे हैं सब यादों के,
कटुता के प्रतिनिधि बतलाते,
हैं अर्थ मधुर संवादों के।
घोर निराशा मन में बैठी,
चारों ओर तिमिर दिखता है,
नामुमकिन है भाव समझना,
मुस्कान निमित अवसादों के।

पर सूरज की संताने हैं,
अंधियारों में पल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

जहर घुला है हर मौसम में ,
धरती भी हमसे रूठी है,
भय पसरा है हर आंगन में,
और चाल प्रकृति की टूटी है,
बर्बादी की सारी खबरें,
सारी ही अटकल सच्ची हैं,
जो जीवन को आस दिलाती,
बात वही बस इक झूठी है।

ज़ख्मी कुदरत के घावों पर,
मिलकर मरहम मल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

- आदर्श जैन

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