माना कि, ज़िन्दगी के जिस्म पर, वक़्त के घाव गहरे थे,
माना कि सपनों की मासूम ज़िद पर, अपनों के सख्त पहरे थे.
माना कि, इल्ज़ाम झूठ के सच पर बड़े संगीन थे,
माना कि, चेहरे अँधेरे के रोशनी से अधिक रंगीन थे.
माना कि, नसीब की कड़कड़ाती धूप ने तुम्हारा सब्र सारा निचोड़ लिया,
माना कि, जिसे सबसे ज़्यादा प्यार किया, उसने भी नाता तोड़ दिया.
माना कि, ज़िन्दगी के इस पहर में दर्द, आँसू और गम थे,
माना कि, परीक्षाओं में अंक इस बारी थोड़े कम थे.
माना कि, तुम्हारी सारी कोशिशों को नाकाम करने,
दुनिया का ज़ालिम कवच था,
दुनिया का ज़ालिम कवच था,
माना कि, जो तुमने लिखा आखिरी खत में,
वो हर्फ़ दर हर्फ़ सच था.
वो हर्फ़ दर हर्फ़ सच था.
हो सकता है तुम्हारी उम्मीदों के कंधों पर,
तुम्हारे ही सपनों के जनाज़े होंगे,
तुम्हारे ही सपनों के जनाज़े होंगे,
कोई खिड़की पर ज़रूर खुली होगी,
जब बंद सभी दरवाज़े होंगे.
जब बंद सभी दरवाज़े होंगे.
मगर तुम तो, इस तरह यूँ बेआवाज़ हो गए,
खुद से ऐसे रूठे, कि ज़िन्दगी से नाराज़ हो गए.
हर मुश्किल का हल था तुम्हारे भीतर, तुमने खोजा ही नहीं,
ज़िन्दगी जीने के और भी मकसद थे, तुमने सोचा ही नहीं.
तुमने नहीं सोचा कि, फूल खुशियों का हर मौसम नहीं खिलता,
मानव-जीवन ऐसा अनमोल तोहफा है, जो हर किसी को नहीं मिलता.
इसकी महत्ता, इसकी अहमियत बहुत ख़ास होती है,
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिन्हे बस चंद साँसों की आस होती है.
तुमने नहीं सोचा कि,
किसी का तुम्हारी ज़िन्दगी पर तुमसे ज़्यादा अधिकार था,
उन्हें खुद से ज़्यादा, तुमसे प्यार था.
उनके आसमान के सूरज, चाँद, सितारे तुम थे,
उनकी जवानी की कमाई, बुढ़ापे के सहारे तुम थे.
तुमने नहीं सोचा कि,
ये अन्याय होगा उन मुसाफिरों के साथ जिनका सफर तुमसे बड़ा था,
जिनकी राहों में भी मुसीबतों का ऐसा ही एक पहाड़ खड़ा था,
हो सकता है अब उनके सपने भी सो जाएंगे,
उनकी हिम्मतों को ठेस पहुँचेगी, हौंसले कमजोर हो जाएंगे.
तुम अपनी कमजोरियों को नया आधार बना सकते थे,
अपनी हार के कारणों को जीत का हथियार बना सकते थे,
जहाँ कठिनाईयाँ भी नतमस्तक हो जाए,
ऐसी सूरत, ऐसा हाल बना सकते थे,
अपनी कामयाबी को हमसफरों के लिए मिसाल बना सकते थे.
मगर तुमने तो आँख मूंदकर,
अपने दिल की उस निर्बल आवाज़ को सुन लिया,
मुसीबतों से निजात पाने का सबसे कायर रास्ता चुन लिया.
ऐसे रास्तों का चुनाव करने वाला,
हमारा कोई दोस्त, भाई या रिश्तेदार हो सकता है,
जिसकी खुदखुशी का कारण भी कोई डरपोक विचार हो सकता है.
क्यूँकि, लोग अक्सर लम्बे सफ़रों में ऊब जाते हैं,
जहाँ से उभारना नामुमकिन हो, ऐसी गहराईओं में डूब जाते हैं.
इसलिए जब लगे कि कोई मुसाफिर, थक गया हो या उदास हो,
जिसे आत्मविश्वास की भूख हो या हौंसलों की प्यास हो,
तो एक हाथ उसकी ओर बढ़ा देना,
हो सकता है, उसे तुम्हारे सहारे की ही तलाश हो.
PENNED BY : ADARSH JAIN
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