Tuesday 26 February 2019

सरहद

ज़रा देखें तो सरहद पर आज हुआ क्या है,
बौराई लपटें कैसी हैं, ये लहराता धुआँ क्या है,
फ़िज़ा में दौड़ रही नयी महक किसकी है,
हवा ने आखिर, ऐसा छुआ क्या है.
पूछता हूँ यहाँ, तो ये कहते हैं लोग,
कि उन घाटियों में भी वहाँ, तैनात रहते हैं लोग.
कहते हैं कि सपनों पर हमारे हिफाज़त उनकी है,
हमारी बेख़ौफ़ नींदों के पीछे शहादत उनकी है.
मातृभूमि की सुरक्षा का वचन निभाते हैं वो
पर्वतों को भी हौंसलों से झुकाते हैं वो.
वो ही हैं जो रातों के अँधेरे में उजाले बनाते हैं,
वो ही हैं जो दिन में सूरज को रौशनी दिखाते हैं.
सोचता हूँ तभी कि वो धुआँ कहीं,
वहाँ ज़मीन पर उतरा आसमाँ तो नहीं,
संभव है कि उसी धुंध में छिपे फरिश्तों के साये हो,
उन वीरों के चरण छूने आज ज़मीं पर आये हों.
और लपटें जो उठ रही हैं बौराई सी दूर वहाँ,
जल तो नहीं रहा कहीं, शत्रु का गुरूर वहाँ.
क्या ये महक नयी, लायी है पैगाम कोई,
सरहद से फिर तो नहीं गया, शिवधाम कोई.
देखता हूँ फिर उधर कि अब हो रही बरसात है,
नयी सुबह के गीत सुनाती कल की ज़ख़्मी रात है,
नियति पूछती है ऐसे में, बताओ तुम्हारी दुआ क्या है,
ज़रा देखें तो सरहद पर आज हुआ क्या है.

- आदर्श जैन

Friday 1 February 2019

कुछ काम था, कुछ रह गया

कहाँ जा रही हैं ज़िंदगियाँ,
ये दौड़ किसके वास्ते,
फुर्सत के लम्हों में अक्सर,
सोचते हैं रास्ते.
ये दौड़ है सुकून की,
तो आराम भी होगा कहीं,
ये दौड़ ही है ज़िन्दगी,
तो मुकाम भी होगा कहीं.
ये बात है विमर्श की,
तो आओ मिलके सोचें ज़रा,
क्या है आखिर माजरा,
क्यों दौड़ रही वसुंधरा.
जद्दोजेहद क्या ये इतनी,
महज़ वक़्त बिताने की है,
ओढ़कर अँधेरा, जलाकर शामें,
फिर से दिन उगाने की है.
बात इतनी ही है अगर,
तो क्यों करें गौर कोई,
मामला है गंभीर बड़ा,
वजह होगी और कोई.
आग लगी है शहर में क्या,
क्या ये मानव डर गया है,
ज़िन्दगी के जहाज में या फिर,
पानी ख्वाइशों का भर गया है.
ऐसा है फिर अगर तो,
होगी बड़ी विडंबना,
व्यर्थ की ही कोशिशें,
व्यर्थ का ही दौड़ना.
जतन सारे किये मगर,
जहाज फिर भी ढह गया,
उम्रभर जो कहा उसने,
अंत में भी कह गया
कुछ काम था, कुछ रह गया.

 - आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...