ज़रा देखें तो सरहद पर आज हुआ क्या है,
बौराई लपटें कैसी हैं, ये लहराता धुआँ क्या है,
फ़िज़ा में दौड़ रही नयी महक किसकी है,
हवा ने आखिर, ऐसा छुआ क्या है.
पूछता हूँ यहाँ, तो ये कहते हैं लोग,
कि उन घाटियों में भी वहाँ, तैनात रहते हैं लोग.
कहते हैं कि सपनों पर हमारे हिफाज़त उनकी है,
हमारी बेख़ौफ़ नींदों के पीछे शहादत उनकी है.
मातृभूमि की सुरक्षा का वचन निभाते हैं वो
पर्वतों को भी हौंसलों से झुकाते हैं वो.
वो ही हैं जो रातों के अँधेरे में उजाले बनाते हैं,
वो ही हैं जो दिन में सूरज को रौशनी दिखाते हैं.
सोचता हूँ तभी कि वो धुआँ कहीं,
वहाँ ज़मीन पर उतरा आसमाँ तो नहीं,
संभव है कि उसी धुंध में छिपे फरिश्तों के साये हो,
उन वीरों के चरण छूने आज ज़मीं पर आये हों.
और लपटें जो उठ रही हैं बौराई सी दूर वहाँ,
जल तो नहीं रहा कहीं, शत्रु का गुरूर वहाँ.
क्या ये महक नयी, लायी है पैगाम कोई,
सरहद से फिर तो नहीं गया, शिवधाम कोई.
देखता हूँ फिर उधर कि अब हो रही बरसात है,
नयी सुबह के गीत सुनाती कल की ज़ख़्मी रात है,
नियति पूछती है ऐसे में, बताओ तुम्हारी दुआ क्या है,
ज़रा देखें तो सरहद पर आज हुआ क्या है.
- आदर्श जैन
बौराई लपटें कैसी हैं, ये लहराता धुआँ क्या है,
फ़िज़ा में दौड़ रही नयी महक किसकी है,
हवा ने आखिर, ऐसा छुआ क्या है.
पूछता हूँ यहाँ, तो ये कहते हैं लोग,
कि उन घाटियों में भी वहाँ, तैनात रहते हैं लोग.
कहते हैं कि सपनों पर हमारे हिफाज़त उनकी है,
हमारी बेख़ौफ़ नींदों के पीछे शहादत उनकी है.
मातृभूमि की सुरक्षा का वचन निभाते हैं वो
पर्वतों को भी हौंसलों से झुकाते हैं वो.
वो ही हैं जो रातों के अँधेरे में उजाले बनाते हैं,
वो ही हैं जो दिन में सूरज को रौशनी दिखाते हैं.
सोचता हूँ तभी कि वो धुआँ कहीं,
वहाँ ज़मीन पर उतरा आसमाँ तो नहीं,
संभव है कि उसी धुंध में छिपे फरिश्तों के साये हो,
उन वीरों के चरण छूने आज ज़मीं पर आये हों.
और लपटें जो उठ रही हैं बौराई सी दूर वहाँ,
जल तो नहीं रहा कहीं, शत्रु का गुरूर वहाँ.
क्या ये महक नयी, लायी है पैगाम कोई,
सरहद से फिर तो नहीं गया, शिवधाम कोई.
देखता हूँ फिर उधर कि अब हो रही बरसात है,
नयी सुबह के गीत सुनाती कल की ज़ख़्मी रात है,
नियति पूछती है ऐसे में, बताओ तुम्हारी दुआ क्या है,
ज़रा देखें तो सरहद पर आज हुआ क्या है.
- आदर्श जैन
No comments:
Post a Comment