Thursday 29 August 2019

घड़ी


उजाले के शोर में तो सुनाई नहीं देती,
पर रात की खामोशी में गुनगुनाती है।
सोचा है कभी,
कि दीवार पर लगी ये घड़ी,
आखिर क्या कहना चाहती है।
इन सुइयों की टिक टिक में,
ज़रूर, कोई तो राज़ है।
मुझे तो लगता है, ये मेरे
अस्तित्व की ही आवाज़ है।
वो 'सेकंड' की सुई जो भाग रही है तेज़ी से,
मुझे अपने संघर्षों जैसी लगती है,
हर लम्हा आगे बढ़ती हुई,
बाकी सबसे बेखबर,
अपनी धुन में चलती है।
और वो धीमी चलती हुई 'घंटे' की सुई,
शायद मेरे सपनों को दर्शाती है,
समय के चक्र पर रेंगते हुए,
हर बार सेकंड की सुई से टकराती है।
सबके बीच है ज़िन्दगी मेरी,
जो 'मिनट' की सुई की भांति है,
बाकी दोनों सुइयों के बीच किसी तरह,
बस सामंजस्य बैठाती है।
मैं सोचता हूं,
एक उम्र बाद जब ये घड़ी बंद होती होगी,
तो सबसे पहले क्या मरता होगा?
जीवन, संघर्ष या सपने!

- आदर्श जैन

Tuesday 27 August 2019

हाथ मिलाया जाता है..

दाने फेंके जाते हैं फिर जाल बिछाया जाता है,
मासूम परिंदों को यहां ऐसे ही फंसाया जाता है,

इस शहर में आए हो तो ये दस्तूर भी जान लो,
यहां कत्ल से पहले भी हाथ मिलाया जाता है।

शायद हैरत हो जानकर तुम्हें पर इस मुल्क में,
प्रेम पूजा जाता है मगर इश्क़ छिपाया जाता है।

भले सड़क नहीं है गांव में मेरे पर इतना तो है,
हर जाते मुसाफिर को पानी पिलाया जाता है।

क्या कहा था तुमने कि अब से भुला दोगे मुझे,
क्या तुमसे कभी कोई वादा निभाया जाता है।

निकालकर दिल से मुझे क्यूं मेरी यादें रखी हैं,
वक़्त के बटुए से मेरा बेकार किराया जाता है।

- आदर्श जैन

Sunday 18 August 2019

तरक्की

इस कुदरत की दास्तां है ये,
मेरे तस्सवुर की कहानी नहीं,
कहते हैं सदियों पहले,
एक जंगल था यहीं कहीं।
एक चिड़िया थी जो किसी पेड़ पर,
घोंसला बना कर रहती थी,
जीवन का काफी शोर था यहां,
एक नदी बगल से बहती थी।
उस चिड़िया ने सोचा एक दिन,
चलो दुनिया घूम कर आते हैं,
ये जंगल कितना छोटा है,
चलो चांद चूम कर आते हैं।
फिर ऐसी ऊंची उसने उड़ान भरी,
कि निशां गगन में खोते गए,
वो जिन बादलों से होकर गुजरी,
वो बादल धुआं होते गए।
जब चांद चूमकर लौटी वो,
तो सोचा घर को लौट चलें,
ये उड़ान थी बहुत थकानभरी,
चलो उसी घोंसले में आराम करें।
उस धुंए की तीरगी में मगर,
वो जंगल कहीं खो गया,
सिर्फ इमारतें थी अब हर तरफ,
वो जंगल भी इमारत हो गया।
हवा नहीं थी अब सन्नाटे थे,
उस नदी की जगह सड़क पक्की थी,
कुछ लोग अब भी कहते हैं,
वो चिड़िया ही 'तरक्की' थी।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...