Thursday 29 August 2019

घड़ी


उजाले के शोर में तो सुनाई नहीं देती,
पर रात की खामोशी में गुनगुनाती है।
सोचा है कभी,
कि दीवार पर लगी ये घड़ी,
आखिर क्या कहना चाहती है।
इन सुइयों की टिक टिक में,
ज़रूर, कोई तो राज़ है।
मुझे तो लगता है, ये मेरे
अस्तित्व की ही आवाज़ है।
वो 'सेकंड' की सुई जो भाग रही है तेज़ी से,
मुझे अपने संघर्षों जैसी लगती है,
हर लम्हा आगे बढ़ती हुई,
बाकी सबसे बेखबर,
अपनी धुन में चलती है।
और वो धीमी चलती हुई 'घंटे' की सुई,
शायद मेरे सपनों को दर्शाती है,
समय के चक्र पर रेंगते हुए,
हर बार सेकंड की सुई से टकराती है।
सबके बीच है ज़िन्दगी मेरी,
जो 'मिनट' की सुई की भांति है,
बाकी दोनों सुइयों के बीच किसी तरह,
बस सामंजस्य बैठाती है।
मैं सोचता हूं,
एक उम्र बाद जब ये घड़ी बंद होती होगी,
तो सबसे पहले क्या मरता होगा?
जीवन, संघर्ष या सपने!

- आदर्श जैन

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