Sunday 18 August 2019

तरक्की

इस कुदरत की दास्तां है ये,
मेरे तस्सवुर की कहानी नहीं,
कहते हैं सदियों पहले,
एक जंगल था यहीं कहीं।
एक चिड़िया थी जो किसी पेड़ पर,
घोंसला बना कर रहती थी,
जीवन का काफी शोर था यहां,
एक नदी बगल से बहती थी।
उस चिड़िया ने सोचा एक दिन,
चलो दुनिया घूम कर आते हैं,
ये जंगल कितना छोटा है,
चलो चांद चूम कर आते हैं।
फिर ऐसी ऊंची उसने उड़ान भरी,
कि निशां गगन में खोते गए,
वो जिन बादलों से होकर गुजरी,
वो बादल धुआं होते गए।
जब चांद चूमकर लौटी वो,
तो सोचा घर को लौट चलें,
ये उड़ान थी बहुत थकानभरी,
चलो उसी घोंसले में आराम करें।
उस धुंए की तीरगी में मगर,
वो जंगल कहीं खो गया,
सिर्फ इमारतें थी अब हर तरफ,
वो जंगल भी इमारत हो गया।
हवा नहीं थी अब सन्नाटे थे,
उस नदी की जगह सड़क पक्की थी,
कुछ लोग अब भी कहते हैं,
वो चिड़िया ही 'तरक्की' थी।

- आदर्श जैन

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