Saturday 1 January 2022

अजनबी से कोई...

अजनबी सी कोई एक धुन की तरफ,

सारे मानक ही हम तोड़कर चल दिए।


तितलियां क्यूं फिज़ा में ये उड़ने लगीं,

मन में कैसी तरंगे ये उठने लगीं,

ख्वाब किसका ये पलकों पे सजने लगा,

धड़कने दिल की किससे ये जुड़ने लगीं।


प्रश्न जो आज से हल नहीं हो सके,

कल पे फिर, उन्हें हम छोड़कर चल दिए।


फासला है मगर कोई दूरी नहीं,

बात करने को बातें भी ज़रूरी नहीं,

इक कहानी जो पूरी नहीं है मगर,

इक कहानी जो फिर भी अधूरी नहीं।


दो अलग जिंदगी, दो अलग रास्ते,

एक ही रंग को ओढ़कर चल दिए।


डूबती आस को फिर सतह मिल गई,

रोशनी को तिमिर में जगह मिल गई,

तर्क कितने ही शंका ने क्यूं ना दिए,

पर भरोसे को आखिर वजह मिल गई।


दूर होने के थे कई बहाने मगर,

टूटती प्रीत हम जोड़कर चल दिए। 


- आदर्श जैन


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