Friday 22 December 2017

क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….


पप्पुओं जैसी बातें हैं हमरी, छिछोरों जैसे अंदाज़ हैं,
खानदान की आखिरी उम्मीद हैं, जनता के लिए खाज़ हैं,
बुद्धि नाम की हर बीमारी का हम अचूक इलाज है,
हम ही यहाँ के रॉबिनहुड हैं हम ही यहाँ के सरताज है |
हमरे काँपे नाम से कांपे धरती, आसमानों में गूंजे नारे,
क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….

छछुंदर जैसी शक्ल है हमरी, चाऊमीन जैसे बाल हैं,
मटके जैसी तोंद निकली हैं, मधुमक्खी के काटे गाल हैं,
बदसूरती को भी शर्मिंदा कर दे, ऐसा सूरत-ए-हाल है,
फिगर है या माशाअल्लाह, कुदरत का कमाल है |
मगर फिर भी हैं क्यूट, फिर भी हैं प्यारे,
क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….

कलेक्टर गुप्ता हमसे है, कमिशनर चड्ढा हमसे है,
सड़क पर गड्डा हमसे है, दारु का अड्डा हमसे है,
हमसे हैं अपराध सकल,
हमसे है परीक्षाओं की नकल,
हम हैं गुंडे, हम मवाली,
हम हैं दोषी, हम अपराधी,
मगर फिर भी हैं बेचारे,
क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….

दूर दूर तक गावों में जब बच्चों की आवाज़ें आती हैं,
हमरा ही नाम लेकर उनकी माँ उन्हें समझाती हैं,
गब्बर जैसी हेकड़ी है, भले चार इंच की छाती है,
सैकड़ों-हज़ारो चमचे हैं, पहलवानों जैसी जिनकी कदकाठी है,
जितने तरह के लफड़े हैं, उतनी तरह की लाठी है |
आग लगा के पूरी बस्ती में, हम खड़े हैं किनारे,
क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….

भले-बुरे का भेद न समझें, हम इतने नादान हैं,
देश-दुनिया के गुणाभाग से हम बिलकुल अंजान हैं,
बैटमैन हैं, सुपरमैन हैं, हम ही शक्तिमान हैं,
आचरण में शक्ति कपूर हैं, सड़कों पर सलमान खान हैं |
इतनी योग्यताओं के बावजूद भी, अभी हम हैं कुंवारे,
मगर कोई बात नहीं,
क्यूँकि चच्चा विधायक हैं हमारे….
- आदर्श जैन

Tuesday 19 December 2017

चंपक वन में कवि सम्मलेन

सूरज का प्रकोप था, अलसाई दोपहर थी,
आजकल जंगल में भी परिवर्तन की लहर थी.
जंबो हाथी, घंसू घोड़ा, मीकू खरगोश, बजरंगी बन्दर,
लम्पट लंगूर, गिल्लू गिलहरी और बाकी सभी जानवरों की टोली,
जंगल के राजा शेरखान से जाकर बोली,
हे पशुपुंगव, हे प्राणनाथ, हे जंगलाधिराज !
अनुमति हो तो कुछ कहें महाराज !
कलयुग में भी इतना सम्मान,
गुर्रा कर बोले शेरखान,
'डरो मत dare करो,
कहना क्या चाहते हो, share करो'
"महाराज के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम !"
पीछे से बोला एक बन्दर, जयराम !
"दरअसल बात ऐसी है महाराज,
जैसे जैसे ये जंगल समाप्त हो रहे हैं,
हमारे मनोरंजन के साधन खो रहे हैं,
कल ही की बात हैं महाराज,
मेरा वो पसंदीदा पेड़ भी काट दिया,
जिसपर मैं रोजाना छलांग लगाता था,
अब तो वो तालाब भी सूख गया है,
जिसमें आधा जंगल समाज नहाता था.
सभी जानवर बोर होते हैं, बस कहने से डरते हैं,
रातें तो किसी तरह गुजर जाती हैं, दिन नहीं गुजरते हैं.
इसलिए अगर मानी जाए मेरी राय,
तो जंगल में एक कवि सम्मलेन का आयोजन कराया जाए.
इससे जंगल की सभी कवि प्रतिभाओं को मंच मिलेगा,
और निश्चित ही इस मायूसी में उल्लास का एक फूल खिलेगा"

शेर खान को बेहद पसंद आया ये विचार,
"कल कवि सम्मलेन का आयोजन होगा,
जाओ जाकर फैला दो ये समाचार"

तो शेरखान के फरमान पर,
सभी जानवर पहुंच गए तय स्थान पर.
दूर दराज के इलाकों से भी मेहमान आने लगे,
तो जाहिर है स्वभावानुसार भगदड़ भी मचाने लगे.

"खामोश ! खामोश ! खामोश !"
मंच से बोला कार्यक्रम का संचालक मीकू खरगोश.
"सभा में उपस्थित सभी खासो-आम,
आप सभी को मीकू खरगोश का प्रणाम !
भाईयों-बहनों, कार्यक्रम को ख़ास बनाने के लिए,
आप सभी को बहलाने के लिए,
हज़ारों कवि प्रतिभाओं में से चुनी गईं हैं शीर्ष चार,
जिनके नाम हैं कुछ इसप्रकार,
चिन्दी चूहे, आशिक अजगर, उस्ताद ऊँट और सातंगी सियार !
कविजनों से निवेदन है कि भावनाओं में न बहें,
कोशिश करें कवितायें छोटी ही रहें,
क्यूंकि कुछ श्रोता तो फैमिली के साथ आये हैं,
तो कुछ ऐसे भी हैं जो अंडे-टमाटर साथ लाये हैं.
तो चलिए कव्वाली से करते हैं कार्यक्रम का आगाज़,
और इसके लिए चिन्दी चूहों को देते हैं आवाज़"

चिंदी चूहों ने सबसे पहले शेरखान को माला पहनाई,
और फिर अपनी कव्वाली कुछ ऐसे सुनाई -
" हजरात ! हज़रात ! हज़रात !
आगे वाले हज़रात, पीछे वाले हज़रात, हज़रात गौर फरमाइए,
किसने सोचा था, ऐसा भी हो जाएगा हिंदी में,
कि शेर भी शेर सुनने आएगा हिंदी में,
जंगल कि बची खुची आबरू की कसम,
कि आज बड़ा मज़ा आएगा हिंदी में !"

'तो चूहों की इस धमाकेदार प्रस्तुति के बाद,
बैठ जाइए अपनी कमर कस के,
क्यूंकि हमारे अगले कवि हैं श्रृंगार रस के !
ये आशिक अजगर हैं और इनका,
अपने पेड़ के सामने वाले बिल की नागिन से टांका भिड़ा है,
क्यूंकि ये प्यार intercast  है इसलिए,
लड़की का बाप इनसे चिढ़ा है.
तो दास्ताँ सुनाने अपने दिलवर की,
अगली आवाज़ होगी आशिक अजगर की !'

"क्यूँ खामोश हो इतना, बहाना भूल आया हूँ,
नशे में जो गुजरा था, ज़माना भूल आया हूँ,
मुझे शराबी मत कहना कभी ये जंगल वालों,
मैं एक नागिन की आँखों में लहराना भूल आया हूँ."

' तो इस मनमोहक प्रस्तुति के बाद माहौल को थोड़ा गंभीर बनाते हैं,
और राजस्थान से आये, वीर रस के कवि उस्ताद ऊँट को बुलाते हैं'
अपनी बाते सुनाने के लिए इन्होने पहले भीड़ को शांत कराया,
फिर जंगल की पीड़ा को अपनी कविता में कुछ ऐसे सुनाया -

"मन तो मेरा भी करता है, झूमूँ, नाचूँ, गाऊँ, मैं,
जंगल की प्रशंसा में बासंती गीत सुनाऊँ मैं,
मगर मेघ-मल्हारों वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं,
जंगल की नग्न्ता ढंकने आवरण कहाँ से लाऊँ मैं,
मैं दामन में दर्द तुम्हारे अपने लेकर बैठा हूँ ,
हरियाली के, खुशहाली के सपने लेकर बैठा हूँ,
जंगल की इस हालत के जो भी ज़िम्मेदार हैं,
उनकी ही सरकारें हैं, उनके ही अखबार हैं,
जो हमको बर्बादी की इस हद तक लाने वाले हैं,
हम सबकी कब्रों पर महल बनाने वाले हैं!
इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी,
जंगल के हमदर्दों पर घात नहीं हो सकती थी,
ये लिखने से पहले मेरी कलम रो जाती है,
कि रोज़ जंगल में कोई नई प्रजाति खो जाती है,
अब हम वो इंद्रधनुष वाला ज़माना भूल गए,
मोर नाचना भूल गए, पंछी गाना भूल गए,
आगे का मंजर और डराने वाला है,
सुना है इंसान चाँद पर बस्ती बनाने वाला है,
फिर किसे अपना दोषी ठहराओगे,
अपने लिए नया जंगल कहाँ से लाओगे !
बस यही समझाने आया हूँ,
मैं जंगल की पीड़ा के गीत सुनाने आया हूँ"

'तो वीर रस की इस प्रस्तुति के बाद,
कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए,
आप सभी को हसाने के लिए,
बुलाता हूँ हास्य के अनूठे फनकार को,
आखिरी कवि के रूप में आमंत्रित करता हूँ, सतरंगी सियार को !'

सतरंगी सियार ने बड़ी हिम्मत से जैसे-तैसे,
कहा कुछ ऐसे -

"शेरखान - शेरखान आप मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं,
न जाने क्यूँ इतना रहम खा रहे हैं,
जरूर दाल में कुछ काला है,
लगता है जंगल में चुनाव आने वाला है"

-आदर्श जैन






Monday 6 November 2017

आज मैंने खिड़की से सच्चा हिंदुस्तान देखा


गिलहरी की फुर्ती देखी, मोर का गुमान देखा,
शांत सरोवर और मचलता तूफ़ान देखा,
गाँव देखे,खेत देखे, लहराता खलिहान देखा,
रामू देखा, डेविड देखा, गुरविंदर, रहमान देखा,
पसीने से तरबतर खेत में किसान देखा,
वहीं नंगे बदन दौड़ता, नन्हा अरमान देखा,
आज मैंने खिड़की से सच्चा हिंदुस्तान देखा.

झोपडी में रौनक देखी, सूना मकान देखा,
बेरंग जीवन और जीवंत शमसान देखा,
शहर मुश्किल देखे, गाँव आसान देखा,
कहीं धूप देखी, धुँआ देखा,
तो कहीं कुदरत का अहसान देखा,
सड़क पर बिलखता इंसान देखा,
पत्थर में भगवान देखा,
आज मैने खिड़की से सच्चा हिन्दुस्तान देखा.
बेफिक्र बचपन देखा, यौवन हैरान देखा,
कंगाल राजा और फ़कीर धनवान देखा,
हंसों का अपमान देखा, कौओं का सम्मान देखा,
लालच देखा, लोभ देखा, तो पुण्य और दान देखा,
नफरत को हँसते देखा, मोहब्बत को परेशान देखा,
दिलों में पत्थर देखे, पत्थर पर दिल का निशान देखा,
आज मैंने खिड़की से सच्चा हिन्दुस्तान देखा.
    -आदर्श जैन

Sunday 29 October 2017

क्यों है..

गला रुंध है, आवाज़ भारी क्यों है ,
चेहरे पर ये लाचारी क्यों है ,

आँखो ने तो सबकुछ कर ही दिया बयाँ ,
फिर बातों में दुनियादारी क्यों है.

अब तो आकाश भी चूमता है निशाँ, उसके कदमों के,
फिर धरती पर वो बेचारी क्यों हैं .

सुना है हमारे सूरज का रुतबा है, आसमाँ में बहुत
फिर देश में इतनी बेरोज़गारी क्यों है .

अभी-अभी तो माँगी हैं, दुआएँ अमन की,
फिर ज़ंग की ये तैयारी क्यों है .

दुश्मन ही सूत्रधार हैं जब, साज़िश के मेरे क़त्ल की,
फिर दोस्त इतने आभारी क्यों हैं .

इन उपद्रवी परिंदों पर तो कोई जारी नहीं करता, फ़तवे,
फिर ज़िंदगी मुश्किल हमारी क्यों है .

-आदर्श जैन

Friday 13 October 2017

मुझे ह्रदय से सुनना यारों, मैं ह्रदय देश का बोल रहा हूँ.

मैं अमरकंटक की पहाड़ी हूँ, खजुराहो का इतिहास भी हूँ,
ग्वालियर का राजसी रुतबा भी, और इंदौरी मिठास भी हूँ,
मैं जबलपुर की शीतलता हूँ और शान हूँ भोपाल की,
मैं पचमढ़ी की रमणीयता और नगरी हूँ महाकाल की,
मैं हूँ पन्ना का अनमोल रत्न और कान्हा का उद्यान भी,
मैं चित्रकूट की धर्मनगरी और ओंकारेश्वर का ध्यान भी,
मैं निर्मलता हूँ नर्मदा की और चंचलता हूँ चम्बल की,
देवता तक खाते सौगंध जिसके पवित्र पावन जल की,
मैं भेड़ाघाट का चमत्कार हूँ, भीमबेटिका की दीवार भी हूँ,
मैं साँची का पवित्र स्तूप और मंदसौर का प्यार भी हूँ.
संस्कृति के व्याकरण में, मैं मिश्री भाषा की घोल रहा हूँ,
मुझे ह्रदय से सुनना यारों, मैं ह्रदय देश का बोल रहा हूँ.

मैं कला- कौशल का पोषक हूँ, मैंने कई फनकारों को जन्म दिया है,
मेरे कई बेटों की प्रतिभाओं ने, मेरी माटी को धन्य किया है,
तानसेन का अमर संगीत और निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल हूँ मैं,
मैं चंद्रशेखर की आज़ादी हूँ और राजनीति का अटल हूँ मैं,
मैं स्वर कोकिला लता मंगेशकर हूँ, तो अभिनय का अशोक कुमार भी हूँ,
मैं शरद जोशी का हास्य-व्यंग्य, तो सत्यार्थी का नोबेल पुरूष्कार भी हूँ,
मैं तात्या टोपे का स्वतंत्रता संग्राम और अम्बेडकर का संविधान हूँ,
मैं अवन्ती बाई की वीर गाथा और रानी लक्ष्मी का स्वाभिमान हूँ,
सफलता के अमृत में, मैं रंग प्रतिभा के घोल रहा हूँ,
मुझे ह्रदय से सुनना यारों, मैं ह्रदय देश का बोल रहा हूँ.

-आदर्श जैन

Sunday 9 July 2017

ख़ुदकुशी

माना कि, ज़िन्दगी के जिस्म पर, वक़्त के घाव गहरे थे,
माना कि सपनों की मासूम ज़िद पर, अपनों के सख्त पहरे थे.


माना कि, इल्ज़ाम झूठ के सच पर बड़े संगीन थे,
माना कि, चेहरे अँधेरे के  रोशनी से अधिक रंगीन थे.


माना कि, नसीब की कड़कड़ाती धूप ने तुम्हारा सब्र सारा निचोड़ लिया,
माना कि, जिसे सबसे ज़्यादा प्यार किया, उसने भी नाता तोड़ दिया.


माना कि, ज़िन्दगी के इस पहर में दर्द, आँसू और गम थे,
माना कि, परीक्षाओं में अंक इस बारी थोड़े कम थे.


माना कि, तुम्हारी सारी कोशिशों को नाकाम करने,
दुनिया का ज़ालिम कवच था,
माना कि, जो तुमने लिखा आखिरी खत में,
वो हर्फ़ दर हर्फ़ सच था.


हो सकता है तुम्हारी उम्मीदों के कंधों पर,
तुम्हारे ही सपनों के जनाज़े होंगे,
कोई खिड़की पर ज़रूर खुली होगी,
जब बंद सभी दरवाज़े होंगे.


मगर तुम तो, इस तरह यूँ बेआवाज़ हो गए,
खुद से ऐसे रूठे, कि ज़िन्दगी से नाराज़ हो गए.
हर मुश्किल का हल था तुम्हारे भीतर, तुमने खोजा ही नहीं,
ज़िन्दगी जीने के और भी मकसद थे, तुमने सोचा ही नहीं.


तुमने नहीं सोचा कि, फूल खुशियों का हर मौसम नहीं खिलता,
मानव-जीवन ऐसा अनमोल तोहफा है, जो हर किसी को नहीं मिलता.
इसकी महत्ता, इसकी अहमियत बहुत ख़ास होती है,
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जिन्हे बस चंद साँसों की आस होती है.


तुमने नहीं सोचा कि,
किसी का तुम्हारी ज़िन्दगी पर तुमसे ज़्यादा अधिकार था,
उन्हें खुद से ज़्यादा, तुमसे प्यार था.
उनके आसमान के सूरज, चाँद, सितारे तुम थे,
उनकी जवानी की कमाई, बुढ़ापे के सहारे तुम थे.


तुमने नहीं सोचा कि,
ये अन्याय होगा उन मुसाफिरों के साथ जिनका सफर तुमसे बड़ा था,
जिनकी राहों में भी मुसीबतों का ऐसा ही एक पहाड़ खड़ा था,
हो सकता है अब उनके सपने भी सो जाएंगे,
उनकी हिम्मतों को ठेस पहुँचेगी, हौंसले कमजोर हो जाएंगे.


तुम अपनी कमजोरियों को नया आधार बना सकते थे,
अपनी हार के कारणों को जीत का हथियार बना सकते थे,
जहाँ कठिनाईयाँ भी नतमस्तक हो जाए,
ऐसी सूरत, ऐसा हाल बना सकते थे,
अपनी कामयाबी को हमसफरों के लिए मिसाल बना सकते थे.


मगर तुमने तो आँख मूंदकर,
अपने दिल की उस निर्बल आवाज़ को सुन लिया,
मुसीबतों से निजात पाने का सबसे कायर रास्ता चुन लिया.
 
ऐसे रास्तों का चुनाव करने वाला,
हमारा कोई दोस्त, भाई या रिश्तेदार हो सकता है,
जिसकी खुदखुशी का कारण भी कोई डरपोक विचार हो सकता है.
क्यूँकि, लोग अक्सर लम्बे सफ़रों में ऊब जाते हैं,
जहाँ से उभारना नामुमकिन हो, ऐसी गहराईओं में डूब जाते हैं.


इसलिए जब लगे कि कोई मुसाफिर, थक गया हो या उदास हो,
जिसे आत्मविश्वास की भूख हो या हौंसलों की प्यास हो,
तो एक हाथ उसकी ओर बढ़ा देना,

हो सकता है, उसे तुम्हारे सहारे की ही तलाश हो.

PENNED BY : ADARSH JAIN

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...