Friday 2 November 2018

जिधर देखते हैं...

कुछ इस तरह उसकी बंदगी का असर देखते हैं,
हम डर की निग़ाहों में भी डर देखते हैं,

जो मिलते हैं बुज़ुर्गों से तो देखते हैं उनके पाँव,
दुश्मन से जब मिलते हैं, तो सर देखते हैं.

जाने कैसे लोग लकीरों में मुक़द्दर ढूँढ़ लेते हैं,
हम माथे की शिकन में भी, ख़बर देखते हैं.

एक वो हैं जिनकी नींदें ताजमहल ने उड़ा रखी हैं,
एक हम हैं जो झुग्गियों में भी बसर देखतें हैं.

वो पूछ रहे थे कि यूँ आँखें बंद करके क्या देखते हैं,
हमने कह दिया 'घर' देखते हैं, जिधर देखते हैं.

- आदर्श जैन 

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