"जब तक मैं खुद को महसूस कर पाता, मैं एक कैफे में बैठा हुआ था | शायद किसी कहानी के अंत की तलाश मुझे यहाँ लाई थी | मैं लोगों से नज़रें मिलाकर उनके जिए हुए में झाँकने की कोशिश करता और उसका प्रतिबिम्ब कागज़ पर उकेर देता | ऐसे मैंने वहाँ ढेरों प्रतिबिम्ब बनाये मगर किसी की भी शक्ल मेरी कहानी के मुख्य किरदार से नहीं मिलती थी | मेरी कहानी का मुख्य किरदार एक लेखक था जो अपनी कहानियों में समाज को आईना दिखाने के लिए मशहूर था | उचित अंत न खोज पाने की असमर्थता से उठने वाले अब सभी ख़याल यहाँ आने के ख़याल को कोसने लगे | तभी टीवी पर एक ख़बर दिखाई जाती है कि देश का एक जाना माना उद्योगपति काफी लोगों के पैसे लेकर विदेश फरार हो गया है | मैं असहज महसूस करने लगा और वहाँ से उठकर सड़क पर किसी चोर की तरह बेतहाशा भागने लगा | मुझे कहानी का अंत मिल गया था |"
- आदर्श जैन
- आदर्श जैन