Thursday 25 April 2019

तलाश

"जब तक मैं खुद को महसूस कर पाता, मैं एक कैफे में बैठा हुआ था | शायद किसी कहानी के अंत की तलाश मुझे यहाँ लाई थी | मैं लोगों से नज़रें मिलाकर उनके जिए हुए में झाँकने की कोशिश करता और उसका प्रतिबिम्ब कागज़ पर उकेर देता | ऐसे मैंने वहाँ ढेरों प्रतिबिम्ब बनाये मगर किसी की भी शक्ल मेरी कहानी के मुख्य किरदार से नहीं मिलती थी | मेरी कहानी का मुख्य किरदार एक लेखक था जो अपनी कहानियों में समाज को आईना दिखाने के लिए मशहूर था | उचित अंत न खोज पाने की असमर्थता से उठने वाले अब सभी ख़याल यहाँ आने के ख़याल को कोसने लगे | तभी टीवी पर एक ख़बर दिखाई जाती है कि देश का एक जाना माना उद्योगपति काफी लोगों के पैसे लेकर विदेश फरार हो गया है | मैं असहज महसूस करने लगा और वहाँ से उठकर सड़क पर किसी चोर की तरह बेतहाशा भागने लगा | मुझे कहानी का अंत मिल गया था |"

- आदर्श जैन 

Monday 8 April 2019

मुश्किल होगी पर जाना होगा

अब यहाँ से किस ओर ले जाने,
फिर आयी है ये भोर जगाने,
नई चुनौतियों की किताब लेकर,
फिर नई मंज़िल का ख्वाब लेकर,
पहनकर घड़ी सामने खड़ी है,
बड़ी जल्दी है, बड़ी हड़बड़ी है.

मुझे भी अब नई उड़ानें भरने,
फिर दुनिया को साबित करने,
नींद से खुद को जगाना होगा,
मुश्किल होगी पर जाना होगा.

इन पुरानी राहों पर चलते चलते,
फिसलते, गिरते, उठते, संभलते,
जाने कब हस्ती जवान हो गयी,
हर पत्थर से मेरी पहचान हो गयी,
मैंने देखा है इनका कोना-कोना,
इन्हें पता है मेरा, हँसना-रोना.

मगर अब नए कर्त्तव्य निभाने,
उन नई राहों से रिश्ता बनाने,
इनसे मोह अपना छुड़ाना होगा,
मुश्किल होगी पर जाना होगा.

कुछ ऐसे मुझको यहाँ यार मिले,
पराये लोगों में अपने किरदार मिले,
जो माहौल जमा दें हर महफ़िल में,
जो घर बना लें सबके दिल में,
ज़िन्दगी की शक्ल में त्यौहार हैं वो,
मेरा अपना अनोखा परिवार हैं वो.

सबको अब अलविदा कहने,
एकांत नई दुनिया में रहने,
बावरे इस मन को मनाना होगा,
मुश्किल होगी पर जाना होगा.

मेरी जितनी कहानी जितने किस्से हैं,
अधिकतर सब यहीं के हिस्से हैं,
हर अंदाज़ जो भरा है मुझमें,
रंग यहीं का बिखरा है मुझमें,
होगा ज़िक्र जब भी, किसी बात में,
आएगी हँसी, आँसुओ के साथ में.

बाँधकर अब यादें, एक गठरी में
बस जाने किसी नई नगरी में,
कदमों को अपने उठाना होगा,
मुश्किल होगी पर जाना होगा.

- आदर्श जैन

Monday 1 April 2019

बस इज़हार नहीं करती..

सोचता था कि सोचती होगी वो भी, बस इज़हार नहीं करती,
शायद इसीलिए मेरी किसी गुस्ताख़ी से इनकार नहीं करती,

फिर जब बताया उसे हाल-ए-दिल अपना, तो उसने ये कहा,
कि तुम्हें पसंद तो करती हूँ मैं बहुत, मगर प्यार नहीं करती.

ये तजुर्बा है इश्क़ के रोग का जो बताया है हमें मरीजों ने,
कि इश्क़ साला बीमारी ही ऐसी है जो बीमार नहीं करती.

सोचती हो बिछड़कर, कि जीना मुहाल होगा मेरा, तो सुन लो ,
कि धड़कती हो तुम अब भी दिल में, पर झंकार नहीं करती.

बस इस एक धुरी पर झूलती रहीं जनता की तमाम उम्मीदें,
सरकार कहती रही वो नहीं करते, वो कहते रहे सरकार नहीं करती.
 
-आदर्श जैन 

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...