Monday 6 May 2019

कविता और खामोशी


ये रात की बेचैनी जैसे, कोई सवेरा ढूँढती है,
मेरी खामोशी किसी, कविता में बसेरा ढूँढती है।

उल्लास से भीगे लम्हों में, इसने वेदनाएं देखी हैं
पत्थर से निष्ठुर हृदयों में भी संवेदनाएं देखी हैं,
गुलाबों से सजे उपवन में ये, बटोर रही थी काँटे,
जलसों में जब डूबे थे सब, ये बीन रही थी सन्नाटे।

रोशन दिए के दामन में, व्याप्त अंधेरा ढूँढती है,
मेरी खामोशी किसी, कविता में बसेरा ढूँढती है।

जन्म-मृत्यु के चक्कर काटती, इस रूह की तड़पन में,
आते कल की तलाश में या बीते कल की भटकन में,
भवसागर की स्थिरता में या बेकल मन की हिलोरों में,
अन्तस्तल से उठती प्रतिध्वनियों के गहराते शोरों में।

हर पल हर क्षण ये ज़िन्दगी, साथ तेरा ढूँढती है,
मेरी खामोशी किसी, कविता में बसेरा ढूँढती है।

- आदर्श जैन



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शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...