Saturday 1 June 2019

रात गुज़र गई होगी...

इन टूटे फूटे सितारों की तो तक़दीर संवर गई होगी,
तुम्हारी ही खुशबू होगी जो अंबर में बिखर गई होगी,

तुम्हें जो देखा फिर इन आँखों को होश ही कहाँ रहा,
ये चाँद निहारती रही होंगी और रात गुज़र गई होगी।

वो नींद जो हर शाम चक्कर काटती थी मेरी पलकों के,
आज किस ठाँव रुकी होगी, आज किसके घर गई होगी।

वे नासमझ है जो पूछ रहे हैं कारण, बेमौसम बरसात का,
अरे, मेरी दास्तां सुनकर, बादलों की आंख भर गई होगी।

- आदर्श जैन

No comments:

Post a Comment

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...