इन टूटे फूटे सितारों की तो तक़दीर संवर गई होगी,
तुम्हारी ही खुशबू होगी जो अंबर में बिखर गई होगी,
तुम्हें जो देखा फिर इन आँखों को होश ही कहाँ रहा,
ये चाँद निहारती रही होंगी और रात गुज़र गई होगी।
वो नींद जो हर शाम चक्कर काटती थी मेरी पलकों के,
आज किस ठाँव रुकी होगी, आज किसके घर गई होगी।
वे नासमझ है जो पूछ रहे हैं कारण, बेमौसम बरसात का,
अरे, मेरी दास्तां सुनकर, बादलों की आंख भर गई होगी।
- आदर्श जैन
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