Monday 30 March 2020

स्पीड ब्रेकर

ताकि,
अहंकार में दौड़ती हुई कारें,
हद में रखें अपनी रफ़्तारें।
ताकि,
आंधियों से होड़ लगातीं मोटरसाइकिलें,
दुर्घटनाओं से न जा मिलें।
ताकि,
मदहोश होकर चलते ट्रक,
देखते हुए चलें सड़क।
ताकि,
मंजिल की आरज़ू लेकर निकली गाड़ियां
न भूल जाएं खयाल सफर का,
ज़रूरी है रास्तों में,
होना स्पीड ब्रेकर का।

ताकि,
दिन-ब -दिन विषेला होता स्वार्थ,
प्रकृति को न पहुंचा पाए आघात।
ताकि,
अमरता को प्राप्त करता लालच,
सारे संसाधनों को न कर दे खर्च।
ताकि,
नियंत्रण से बाहर होता पाप,
न ले आए प्रलयकारी संताप।
ताकि,
महत्त्व समझ पाए इंसान,
स्वामित्व और सहभागिता के अंतर का,
बहुत जरूरी है ज़िन्दगी में,
होना स्पीड ब्रेकर का।

- आदर्श जैन

Saturday 28 March 2020

बस और ट्रक: एक प्रेमकथा

किसी बड़े आम दिन की,
बड़ी खास शाम में,
मध्यप्रदेश राज्य परिवहन की एक बस,
खड़ी थी ट्रैफिक जाम में।
गाड़ियों की कतार थी लंबी,
इसलिए इंतजार भी बड़ा था,
वहीं, All India Permit वाला एक ट्रक,
बस के ठीक आगे खड़ा था।
बस ने देखा उसे,
अपनी Headlights की नज़र से,
वहीं उसने भी खूब निहारा बस को,
अपने Rear view Mirror से,
तो नई - नई जवानी का,
नया-नया ये खुमार था,
बस और ट्रक के बीच शायद,
पहली नजर वाला प्यार था।
बस ट्रक के,
Advertisements वाले टैटू पर फिदा थी
वहीं ट्रक को भायी बस की,
सादगी वाली अदा थी।
न कोई साज - श्रृंगार,
फिर भी कितनी आकर्षक,
खयालों के बादलों में कहीं,
खो गया था ट्रक,
इतना कि उसने Family Planning के,
सारे आयाम तक सोच लिए,
यहाँ तक कि होने वाले दोपहिया वाहनों के,
नाम तक सोच लिए।
होश आया तो पाया,
पहियों के नीचे तो ज़मीन है,
वहीं टैटू से नज़र हटी तो बस ने देखा,
उसका प्यार शायरियों का भी शौकीन है।
इश्क़ का रंग बस पर,
तब और गहरा चढ़ा,
जब उसने ट्रक पर ये लिखा पढ़ा,
कि " चलती है गाड़ी तो उड़ती है धूल,
मेरी जान का मुखड़ा जैसे गुलाब का फूल।"
" तेरी लिए गोरी,
लड़ जाऊंगा संसार से,
हमारी मोहब्बत को दुनियावालों,
देखो मगर प्यार से।"
बस ने मुस्कुराकर अपनी Headlights को झुकाया,
कि वहीं ट्रक पर ये लिखा पाया,
"फूलों की माला, मालाओं का हार हो जाएगा,
हंस मत पहली, प्यार हो जाएगा।"
इस नयन - विनिमय में न जाने कब,
शाम का सूरज भी ढल गया।
समय कुछ ऐसा बीता,
कि रुका हुआ जाम आगे बढ़ गया।
इसके बाद वे दोनों,
अपने-अपने रास्तों पर जाने लगे,
इधर बस महोदया ने Horn बजाया,
और उधर श्रीमान ट्रक,
विदाई का संगीत बजाने लगे।
अपनी steering पर रखकर पत्थर,
बामुश्किल बस आगे बढ़ी,
तभी उसकी नजर,
ट्रक पर लिखी एक और शायरी पर पड़ी।
लिखा था,
"ऐ बुलबुल शोर मत कर,
आज ग़म की रात है,
आयेंगे तेरे शहर में बस,
दो-चार दिन की बात है।"
इस बात को,
ट्रक का दिया हुआ वादा समझकर,
बस ने देखा उसे आखिरी बार,
पीछे पलटकर।
इस उम्मीद में कि अगली बार,
खुलकर Engine से Engine की बात होगी,
किसी नुक्कड़, चौराहे, हाईवे या जाम में,
फिर जरूर कोई मुलाकात होगी।
इस मुलाकात का सपना पर,
हकीकत से बहुत दूर था,
किस्मत को तो शायद,
कुछ और ही मंजूर था।
किसने सोचा था कि अगली सुबह,
भयानक सांप्रदायिक दंगे होंगे,
इंसान के हाथ इंसान के खून से रंगे होंगे।
पूरा मुल्क हिंसा की आग में जल रहा होगा,
दिलों में आक्रोश होगा,
नसों में लहू उबल रहा होगा।
नफ़रत की आंधी मानवता को निगल जाएगी,
किसने सोचा था इन दंगो में,
वो बस भी जल जाएगी।
ट्रक को जब खबर लगी,
तो उसकी आरज़ू मानो Diesel में बह गई,
और ये प्रेम कथा भी,
सभी महान प्रेम कथाओं की तरह,
अधूरी ही रह गई।

- आदर्श जैन

Tuesday 24 March 2020

छंद


पशु पालो, पक्षी पालो, भरम न पालो कोई,
कैसे सोचा आपने कि, हम टिक जाएंगे।

कल उनके साथ थे, आज इनके पास हैं,
तीसरे के संग हम, कल दिख जाएंगे।

लोगों से किए वादों को, चुनावों के संवादों को,
हम जैसे राजनेता, झूठ लिख जाएंगे।

रुपया ही ईमान है,  पैसा ही भगवान है,
ज़्यादा देगा कोई गर, फिर बिक जाएंगे।

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चेहरा जैसे चंद्रमा, सलोनी भाव - भंगिमा,
कैसी सुंदर उसकी, चाल मत पूछिए।

नयनों से हंसकर, सादगी से सजकर
फेंका कैसा मोहनीय, जाल मत पूछिए।

होता कैसा प्रेम - असर, है पूछना ही अगर,
हर बात में बाल की, खाल मत पूछिए।

जिसके प्रेम में मिटे, उसी के प्रेम में पिटे,
कैसा है अब हमारा, हाल मत पूछिए।

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कहते हो भूल जाएँ, कहो कैसे भूल जाएँ,
बार बार उन्हें याद, करती हिचकियां।

भावना शून्य मन में, अतीत के गगन में,
स्मृतियों के नए रंग, भरती हिचकियां।

किस्मत के सितारों से, आशंकित विचारों से,
पल पल हर पल, डरती हिचकियां।

वर्तमान से हारती, भविष्य को नकारती,
आशाओं से ही जीवित, मरती हिचकियां।

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- आदर्श जैन

Thursday 5 March 2020

वो आंसू अचानक क्यूं बहने लगे...

हर दुख में जो आंखों में ठहरे रहे,
वो आँसू अचानक, क्यूँ बहने लगे।

ये सपनों की बातों में, आकर हम,
प्रीत के इस शहर में, चले आए थे।
तुम्हें पाने की ज़िद ने उजाड़ा हमें,
आए थे हम यहां तो, भले आए थे।

हम में तो हमेशा से,  हम ही रहे,
तुम न जाने कबसे, फिर रहने लगे।

हैं सितारे हमारे, संग जागे हुए,
क्या होगा कि जब हम सो जायेंगे।
थामे रहेंगे क्या रात को ये सदा,
भोर होते ही या फिर, खो जाएंगे।

ये प्रश्न जो तुम्हारी प्रतीक्षा में थे,
आते ही तुम्हारे, क्यूं ढहने लगे ।

ये तुम्हारे बिना जीने की कल्पना,
मर जाने से बेशक, मुश्किल तो है,
नियति ने ही माना दूर हमें किया,
मौन इसमें हमारा, शामिल तो है।

थे अधर, जो सालों से साधे हुए,
अब नयन क्यूं वो बातें, कहने लगे।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...