हर दुख में जो आंखों में ठहरे रहे,
वो आँसू अचानक, क्यूँ बहने लगे।
ये सपनों की बातों में, आकर हम,
प्रीत के इस शहर में, चले आए थे।
तुम्हें पाने की ज़िद ने उजाड़ा हमें,
आए थे हम यहां तो, भले आए थे।
हम में तो हमेशा से, हम ही रहे,
तुम न जाने कबसे, फिर रहने लगे।
हैं सितारे हमारे, संग जागे हुए,
क्या होगा कि जब हम सो जायेंगे।
थामे रहेंगे क्या रात को ये सदा,
भोर होते ही या फिर, खो जाएंगे।
ये प्रश्न जो तुम्हारी प्रतीक्षा में थे,
आते ही तुम्हारे, क्यूं ढहने लगे ।
ये तुम्हारे बिना जीने की कल्पना,
मर जाने से बेशक, मुश्किल तो है,
नियति ने ही माना दूर हमें किया,
मौन इसमें हमारा, शामिल तो है।
थे अधर, जो सालों से साधे हुए,
अब नयन क्यूं वो बातें, कहने लगे।
- आदर्श जैन
No comments:
Post a Comment