Saturday 19 January 2019

चले आने दो इस शत्रु को भी..


क्या कहते हो कि मेरे भारत के अम्बर में काले बादल घिर आये हैं,
कि सीमा पर सिंह की खाल ओढ़कर फिर गीदड़ों के सिर आये हैं,
कि सदियों से सुलगते शोलों ने आज आग उगलना ठाना है,
कि विपत्तियों के विषैले कंठों में वही विद्रोही तराना है,
कि फिर आक्रोशित हुआ है प्रभंजन, काल की ललकार पर,
कि चुनौतियाँ और भी खड़ी, हैं प्रतीक्षा में द्वार पर,
तो जाओ जाकर कह दो सब आँधियों के दूतों से,
अब न टकराने का साहस करें माँ भारती के पूतों से,
चाहे तो देखलें आजमाकर, कितना खून हैं कितना पानी हैं
चले आने दो इस शत्रु को भी, आ देखें कितनी जवानी हैं.

क्या दुश्मन कुछ ज्यादा ही, अहंकार पर अपने झूल गया,
भूल गया वो पराजय अपनी, औकात भी अपनी भूल गया,
भूल गया कि इस चमन के फूलों में, बलिदानी खुशबू समाई है,
कि उसने जब जब आँख उठाई है, तब तब मुँह की खाई है.
कि कतरा-कतरा पवन का गाता यहाँ, देशप्रेम की गीतिका है,
हर बेटा यहाँ का विवेकानंद और हर बेटी मणिकर्णिका है,
कि इस माटी के कण कण पर लिखी, अमर शौर्य की परिभाषा है,
यहाँ गाँधी की अहिंसक वाणी हैं, तो वीर भगत सिंह की भी भाषा है.
मुसीबतों से भिड़ने की हमारी, आदत बहुत पुरानी है,
चले आने दो इस शत्रु को भी, आ देखें कितनी जवानी हैं.


परिश्रम के घोर सन्नाटों में, तुम्हें नाम हमारा सुनाई देगा,
सफलता के दूर क्षितिज तक, हस्ताक्षर हमारा दिखाई देगा,
हमारा ही उल्लेख देखोगे तुम, इतिहास में, विज्ञान में,
तपस्या की तपती ज़मीन पर, कैवल्य के आसमान में.
कल हमारा रहा स्वर्णिम और कल भी राहों में हीरे पड़े होंगे,
नई पीड़ी की अनुशंसा करने, देवता भी स्वर्ग में खड़े होंगे,
जीत की विविध पताकाओं पर, नाम केवल एक होगा,
सारा विश्व करेगा अनुमोदना, जब विजयी अभिषेक होगा.
यथार्थ है ये कल का, नहीं कल्पना की कोई कहानी है,
चले आने दो इस शत्रु को भी, देखें कितनी जवानी हैं.

- आदर्श जैन

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