Tuesday 29 January 2019

चाँद के नजदीक कहीं

धूप ने कहा कान में,
अचानक मुझसे एक दोपहर,
चाँद के नजदीक कहीं,
होगा अक्लमंदों का शहर.
वो शहर कि जहाँ बागों में,
'समझ' के फूल खिलते होंगे,
हर दुनिया से समझदार,
आके वहाँ मिलते होंगे.
हमारी दुनिया की भी कई,
पीढ़ियाँ होंगी वहाँ,
देखो यहीं, देखो यहीं,
ज़रूर सीढ़ियाँ होंगी यहाँ.
सीढ़ियाँ कि जिनपर चढ़ना,
उम्र गुजारने जैसा हो,
ढलते समय की झुर्रियों को,
माथे पे उतारने जैसा हो.
निश्छल बचपन के मन को अगर,
भाषा छल की आने लगे,
निस्वार्थ यौवन की भूख अगर,
रोटी स्वार्थ की खाने लगे,
अगर सत्य की चुभती भोर से उठकर,
मखमली निशा में जा रहे हो,
चाँद के नजदीक कहीं मंज़िल होगी,
तुम सही दिशा में जा रहे हो.

- आदर्श जैन

No comments:

Post a Comment

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...