Tuesday 26 March 2019

जान पहचान !

सुना है कि खूब जानते हो मुझे,
अपना मीत,अपना दोस्त मानते हो मुझे।

तो मेरे माथे पर उभरी लकीरों में,
देख सकते हो क्या,
मेरा भाग्य और तुम्हारा ज़िक्र,
मेरे सवाल और तुम्हारी फ़िक्र।”

मेरे सीने पर कान रखकर या नब्ज़ टटोलकर,
सुन सकते हो क्या,
मेरे ख्यालों की गुफ्तगू,मेरे सपनों की आवाज़,
मेरे चेहरे पर आते जाते, तमाम रंगो के राज़।

मेरी आँखों के काले घेरों में,
पढ़ सकते हो क्या,
मेरी मुस्कानों के झूठ, मेरी चेतना का मन,
मेरे जीने का नज़रिया, मेरा अवलोकन।

मेरी कविताओं की स्याही निचोड़कर,
बना सकते हो क्या,
मेरी सारी कल्पनाओं की तस्वीर,
मेरे भावों की 'मीरा', मेरे शब्दों के 'कबीर'।

अगर नहीं,
तो मेरी शख्सियत की गहराई में तुम्हें,
खुद को उतारना अभी बाकी है,
जान तो गए हो मुझे जनाब,
पर पहचानना अभी बाकी है।

- आदर्श जैन

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