Wednesday 25 September 2019

गांधी के चश्मों में...

कहते है आशिक़, अक्सर अपनी कसमों में,
कि चांद ले आऊंगा गोरी, तेरे इन क़दमों में,

सुना है चाँद नदारद है, आजकल फलक से,
कहीं कैद तो नहीं वो, शायरों की कलमों में|

जानते हो उस मोहब्बत पे कितने तारे टूटे थे,
जो तमाशा बनी है, आजकल इन मजमों में।

मर जाने के बाद भी अपना इश्क़ अमर रहेगा,
तुमको ही लिखा है मैंने अपनी सारी नज़्मों में।

इस जटिल दुनिया से, मेरा बचपन अच्छा था,
खामखा उलझ गया मैं, बेकार सारी रस्मों में।

मुंतज़िर हूं कि ये ख्वाब एकदिन हकीकत हो,
मैनें स्वच्छ भारत देखा था, गांधी के चश्मों में।

- आदर्श जैन

Saturday 21 September 2019

नेकी कर, दरिया में 'मत' डाल

करी नेकी दिनों बाद तो सोचा,
फेंक आऊं दरिया में,
पुरानी नेकियों को भी चलो आज
देख आऊं दरिया में
आश्चर्य मगर कि कोई दरिया,
कहीं मिला नहीं मुझको,
अचरज ये भी तो कम नहीं,
कि फिर भी गिला नहीं मुझको
दिल ने कहा कि फिर,
आज समंदर ही चल दे
नेकी जितनी बड़ी है,
उतना अधिक जल दे।
सोचा मगर न था,
कि यूं भड़क जाएगा मुझपर,
मैं निवेदन लेकर जाऊंगा,
वो झल्लाएगा मुझपर
शांत रहने वाला समंदर,
अचानक बोला खिसियाकर

लगता है कि तुम भी, उन्हीं इंसानों के साए हो
बताओ सोचकर क्या तुम, ये नेकी, लेकर आए हो
फेंककर इसे मुझमें खुद को महान कर लोगे,
क्या सोचा कि मुझपर कोई एहसान कर दोगे
आए थे तुमसे पहले भी यहाँ कई ऐसे,
जानते हो कि सितम किए उनने कैसे
बनकर पर्यटक कभी तो कभी प्रकृति के रखवाले,
नेकियों के पैकेट उन्होंने मेरे तटों पर ही डाले

एक समय था कि जब मुझमें
कुछ पेड़ पौधे भी होते थे,
जिनको नेकियां समझ लाता था दरिया,
ये उन पापों को ढोते थे
उन पेड़ों का तो अब कोई नामोनिशां नहीं मुझमें,
सच पूछो तो एक पूरा कहकशां नहीं मुझमें
कि सदा हंसने वाली,
इन लहरों की देखो, आंखें ज़ख़्मी हैं
मुझमें रहते सभी जीवों की आज,
सांसें ज़ख़्मी हैं
इनकी अंतड़ियों में प्लास्टिक भर दिया उनने
फेफड़ों को भी इनके, धुआं कर दिया उनने
मैं उनके हर दिए को नेकी समझता रहा
पर असल में मुझे सिर्फ डर दिया उनने
डर कि मेरा अस्तित्व मिट जाएगा एकदिन,
डर कि कांपती लौ पर अंधेरा छाएगा एकदिन
डर कि लौटकर वे, फिर आएंगे एक दिन
डर कि लहरों पर मेरी, आशियाने बनाएंगे एक दिन

खबरदार मगर कि अब ऐसा होने ना पाएगा,
जो डर दिया था उनने अब उन्हें ही डराएगा,
मेरे अंदर अब गुस्से का ज्वार उठता है,
जितनी बार डरता हूं उतनी बार उठता है
समय रहते ये इशारा समझ जाओ तो अच्छा है,
अपनी नेकी लेकर वापस चले जाओ तो अच्छा है
कहीं ऐसा ना हो कि ये डर मुझमें आक्रोश बन जाए,
तुम्हारी गुस्ताखी फिर तुम्हारा ही अफसोस बन जाए।

- आदर्श जैन

Friday 20 September 2019

किसका फोन आता है..

कहां रहता है ध्यान तेरा, खुद से क्या बुदबुदाता है,
ये बिन बताए आजकल तू किससे मिलने जाता है,

कितना भी छिपा लूं इश्क़ मगर मां पूछ ही लेती है,
कौन है वो लड़की, बार बार किसका फोन आता है।

दिमाग कहता है कि तुम्हारा कोई ख़याल ना लाऊं,
दिमाग की सुनते ही जाने क्यूं ये दिल बैठ जाता है।

जाने कैसे लोग इस शहर में शब-ए-हिज्र काटते होंगे,
शुक्र है मेरा दिल मुझे वस्ल की कहानियां सुनाता है।

-Adarsh Jain

Monday 9 September 2019

हर रस्ता मुश्किल लगता है...

कंधों पर उम्मीदों का बस्ता बोझिल लगता है,
चलने से पहले तो हर रस्ता मुश्किल लगता है,

प्रतिकूल लहरों पर जब सवार सांसे चलती हैं,
लाख दूरी होकर भी करीब साहिल लगता है।

चंद क्षणिक हारों से इतने भी नाउम्मीद ना हो,
तुमसे ही देश का रोशन मुस्तकबिल लगता है।

तुम्हारी तरह ही हूबहू मुझसे झगड़ा करता है,
कोई तो है मुझमें जो तुममें शामिल लगता है।

मर्द कहकर खुद को औरत पर हाथ उठाता है,
कोई भी हो पर मुझको, वो बुझदिल लगता है।

लक्ष्य से वो मुझको अक्सर भटकाता रहता है,
ये मन मुझे अपने सपनों का कातिल लगता है।

-आदर्श जैन

कहानी लेकर आए हो...

होठों पर चुप्पी, आंखों में पानी लेकर आए हो,
तुम आज फिर चेहरे पर हैरानी लेकर आए हो

अबतक सुनाए हुए तुम्हारे सारे किस्से झूठे थे,
सच बोलो न फिर कोई कहानी लेकर आए हो।

इस बाज़ार में तो चालाकी के सिक्के चलते हैं,
तुम बड़े नादान हो जो नादानी लेकर आए हो।

जूझते हुए जब मुश्किलों से काट दी है पूरी उम्र,
तब कहते हो कि थोड़ी, आसानी लेकर आए हो।

प्यासी थी जब ये धरती तब तुम कहां थे, बादल!
बाढ़ आयी है अब तो पूरी रवानी लेकर आए हो।

वही सुकून खोजते कई पीढ़ियां हुई हैं रुखसत,
जिसे खोजने तुम पूरी जिंदगानी लेकर आए हो।

- आदर्श जैन

Sunday 1 September 2019

चार लोग

कहीं दूर देश चला गया है,
या फिर रब से ही राब्ता हो गया है,
'चार लोग क्या कहेंगे' की टोली का एक सदस्य,
आज अचानक ही लापता हो गया है।
उसे ढूंढने की खातिर बाकी 'तीन' लोगों ने,
मदद के लिए हाथ उठाए हैं,
और उसकी सभी विशेषताओं के साथ,
उसके पोस्टर पूरे शहर में लगवाए हैं।
तो चलिए इस मुहिम में,
मैं भी अपना फर्ज़ निभाता हूं,
उसकी कुछ शारीरिक एवं चारित्रिक विशेषताएं,
आपको भी बताता हूं।

वो आते जाते लोगों से अक्सर,
फिजूल सवाल करता है,
दिखने में सामान्य है,
पर कई दफा रंग बदलता है।
आंख- कान बिल्कुल चौकन्ने,
और नाक औसत से बड़ी है,
वो बेवजह समय पूछ लेता है,
भले उसके हाथ में भी घड़ी है।
उंगलियां थोड़ी लम्बी हैं,
शायद आपने भी पहचानी हों,
दूसरों की ज़िंदगी में ताकि,
हस्तक्षेप करने में आसानी हो।
अंदर से बेहद चंट है,
मगर दिखने में भोला होगा,
साधारण आंखों से नहीं दिखेगा
पर कांधे पे उसके झोला होगा।
उस झोले में उसने,
कई किताबें भर रखीं हैं,
दुनियाभर के लोगों की उनमें,
'चुगलियां' जमा कर रखीं हैं।
वो भोजन नहीं करता,
बस बातों से ही पेट भर लेता है।
खबरदार रहें,
क्यूंकि किसी भी अंजान व्यक्ति से वो,
किसी की भी चुगली कर देता है।
जैसे,
"फलाने घर में प्रॉपर्टी को लेकर,
दोनों भाइयों में ही टक्कर है,
पता है वो पड़ोस वाली बिजली का,
उस बादल के साथ चक्कर है।
देखा वो कॉलोनी की नई लड़की के,
कपड़े कितने छोटे हैं।
सुना है वो धनीराम ब्याज में डूबा है,
अरे, उसके तो धंधे ही खोटे हैं।
और वो भागचंद का भी,
तो नया धंधा नहीं चला,
अब तुम्हीं बताओ यार,
'मॉडलिंग' भी कोई पेशा है भला।
जब से संतोष की शादी हुई है,
उसके घर में ही रहता उसका साला है,
मुझे तो लगता है यार,
कि दाल में ही कुछ काला है।
अरे एक वो शर्माजी का बेटा है,
जो अमेरिका में नौकरी करता है,
एक अपने वर्माजी का पप्पू है,
जो घर में ही खर्राटे भरता है,
सुना है कि कमलेश 'ड्रग्स' बेचता है,
तभी पुलिस को उसकी तलाश रहती है,
'26' की हो गई है चौबेजी की 'कम्मो',
बताओ अब तक घर में बैठी है।"

इस तरह के किसी व्यक्ति से अगर आप,
बस, ट्रेन या किसी सार्वजनिक स्थान पर मिल जाएं,
तो कृपया करके हमें ना बताएं।
आप चार दूसरे लोगों को बताएं,
वे और चार लोगों को बताएंगे,
बस इसी तरीके से हम,
उसका पता जानना चाहेंगे।

हमारी मदद करने वालों का,
'अखिल विश्व चार लोग क्या कहेंगे महासंघ' द्वारा,
एक इंटरव्यू लिया जाएगा,
और जिसकी भी चुगलियों में दम होगा,
उसे इस समिति में शामिल होने का,
एक मौका दिया जाएगा।
तो आप भी शुरू कर दीजिए उसे ढूंढ़ना,
हो सकता है आपकी तकदीर में ही,
कोई कमल खिल जाए,
और ऐसे ख्यातिप्राप्त संस्थान में,
शामिल होने का सुनहरा मौका,
क्या पता आपको ही मिल जाए।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...