Wednesday 25 September 2019

गांधी के चश्मों में...

कहते है आशिक़, अक्सर अपनी कसमों में,
कि चांद ले आऊंगा गोरी, तेरे इन क़दमों में,

सुना है चाँद नदारद है, आजकल फलक से,
कहीं कैद तो नहीं वो, शायरों की कलमों में|

जानते हो उस मोहब्बत पे कितने तारे टूटे थे,
जो तमाशा बनी है, आजकल इन मजमों में।

मर जाने के बाद भी अपना इश्क़ अमर रहेगा,
तुमको ही लिखा है मैंने अपनी सारी नज़्मों में।

इस जटिल दुनिया से, मेरा बचपन अच्छा था,
खामखा उलझ गया मैं, बेकार सारी रस्मों में।

मुंतज़िर हूं कि ये ख्वाब एकदिन हकीकत हो,
मैनें स्वच्छ भारत देखा था, गांधी के चश्मों में।

- आदर्श जैन

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