कंधों पर उम्मीदों का बस्ता बोझिल लगता है,
चलने से पहले तो हर रस्ता मुश्किल लगता है,
प्रतिकूल लहरों पर जब सवार सांसे चलती हैं,
लाख दूरी होकर भी करीब साहिल लगता है।
चंद क्षणिक हारों से इतने भी नाउम्मीद ना हो,
तुमसे ही देश का रोशन मुस्तकबिल लगता है।
तुम्हारी तरह ही हूबहू मुझसे झगड़ा करता है,
कोई तो है मुझमें जो तुममें शामिल लगता है।
मर्द कहकर खुद को औरत पर हाथ उठाता है,
कोई भी हो पर मुझको, वो बुझदिल लगता है।
लक्ष्य से वो मुझको अक्सर भटकाता रहता है,
ये मन मुझे अपने सपनों का कातिल लगता है।
-आदर्श जैन
चलने से पहले तो हर रस्ता मुश्किल लगता है,
प्रतिकूल लहरों पर जब सवार सांसे चलती हैं,
लाख दूरी होकर भी करीब साहिल लगता है।
चंद क्षणिक हारों से इतने भी नाउम्मीद ना हो,
तुमसे ही देश का रोशन मुस्तकबिल लगता है।
तुम्हारी तरह ही हूबहू मुझसे झगड़ा करता है,
कोई तो है मुझमें जो तुममें शामिल लगता है।
मर्द कहकर खुद को औरत पर हाथ उठाता है,
कोई भी हो पर मुझको, वो बुझदिल लगता है।
लक्ष्य से वो मुझको अक्सर भटकाता रहता है,
ये मन मुझे अपने सपनों का कातिल लगता है।
-आदर्श जैन
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