Sunday 16 December 2018

चुनावी शादी

कुछ घरवालों की अनुमति से, कुछ आपसी सहमति से,
मोहब्बत ने जब कदम मिलाये चुनावों की गति से,
तो 'फलानी' पार्टी के युवा नेता 'विकास' का ब्याह तय हुआ,
'ढिकानी' पार्टी की लोकप्रिय महिला नेता 'प्रगति' से.

संसद के इसी शीतकालीन सत्र में,
होगा विवाह, लिखा था निमंत्रण पत्र में
पत्र में तो और भी चीजें थी मजेदार,
जैसे नाम के स्थान पर छपवाया था 'आधार'.
कुंडलियों को भी शायद राजनैतिक विशेषज्ञों से मिलवाया था,
तभी परिचय में पूरा चुनावी इश्तहार लिखवाया था.
लिखा था कि, जन-जन की यही पुकार है,
दूल्हा हमारा कर्मठ, जुझारू और ईमानदार है.
दुल्हन भी न केवल सुन्दर और सुशील है,
बल्कि लोकप्रिय, मिलनसार और लगनशील है.
आयोजन स्थल में भी वही मैदान लिखा था,
जहाँ अक्सर रैलियाँ और धरने होते हैं,
ये वो साधारण शादी नहीं थी कि जिसमें,
मैरिज हॉल और होटल बुक करने होते हैं.
हर छोटी-बड़ी बात पर आयोजकों का ध्यान था,
निमंत्रण पत्र में ही एक और ऐलान था,
कि, "विरोधियों द्वारा भले ही,
इस आयोजन को मनोरंजन कहा जाएगा,
पर असल में ये पहला ऐसा विवाह होगा,
जो सही मायने में गठबंधन कहलायगा."

देखते ही देखते ये खबर, ख़बरों में छा गयी,
और फिर जल्द ही वो शुभ घड़ी भी आ गयी.
रिवाज़ों की लम्बी फेहरिश्त में अब वक़्त है एक रीत का,
चलिए पहला दृश्य देखते हैं महिला संगीत का.

दूल्हा-दुल्हन के जरुरी रिश्तेदार मंच पर चढ़े हैं,
और दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता हमेशा की तरह मैदान में खड़े हैं.
कौन कार्यकर्ता किस पार्टी का है,
इसे पहचानने का बड़ा टंटा है,
इसलिए 'ढिकानी' पार्टी के कार्यकर्ता खाली हाथ हैं,
और 'फलानी' वालों के हाथ में उनका चुनाव चिन्ह 'घंटा' है.
महिला संगीत में संगीत नहीं बल्कि रिश्तेदारों के भाषण हो रहे हैं,
कुछ रिश्तेदार अपनी बारी के इंतज़ार में हैं, बाकी मजे में सो रहे हैं.
ढिकानी पार्टी के कार्यकर्ता,
भाषणों के बीच में 'ज़िंदाबाद' चिल्ला देते हैं,
वहीं फलानी पार्टी के कार्यकर्ता हैं,
जो समर्थन में घंटा बजा देते हैं.

अब बाकी सभी चीजों को इग्नोर करते हैं,
और कैमरे का मुँह भोजन व्यवस्था की ओर करते हैं.
क्यूँकि शादी में कई बड़े नेता मेहमान हैं,
इसलिए सबकी पसंद का ख़ास ध्यान हैं.
एक तरफ जहाँ, पीने वालों के लिए जाम है
वहीं दूसरी तरफ खाने का भी भरपूर इंतज़ाम है.
वेज है, नॉनवेज है और मिठाईयों का पिटारा भी है,
और तो और, विशेष व्यंजन में 'कोयला' और 'चारा' भी है
पर ये क्या, यहाँ तो कुछ मेहमान मुंह छिपा रहे हैं,
और कुछ हैं जो हंगामा मचा रहे हैं.

इससे पहले कि बखेड़ा खड़ा हो बिना बात का,
अगला सीन देखते हैं नेताजी की बारात का.

टल्ली होकर 'फलानी' पार्टी के कार्यकर्ता ढील में हैं,
अपने नेता को घोड़ी पर देखकर, थोड़ी 'फील' में हैं.
कोई वोट मांगने घरों में फिसल रहा है, कोई नशे में संभल रहा है,
उन्हें लग रहा है कि ये उनके नेता का 'रोड शो' चल रहा है.
इतने में पता चला कि बारात का गरम ज़रा मिजाज़ हो गया है,
'डांस' के लिए न पूछने पर दूल्हे का फूफा नाराज़ हो गया है.
तभी एक कार्यकर्ता ने चुनावी पैंतरा अपनाया,
पूरी सांस खींचकर ये नारा लगाया,
कि "10 के पाव, 20 की भाजी,
अब नाचेंगे, नेताजी के फूफाजी,
इतना सुनकर फूफा फूला नहीं समाया,
तभी दूसरा कार्यकर्ता चिल्लाया,
कि "डिब्बे में डिब्बा, डिब्बे में चूहा,
फूफाजी के साथ नाचेंगी नेताजी की बुआ"

इस घोषणा के साथ ही सब खुश नज़र आते हैं,
तो चलिए अब कैमरा 'फेरों' की तरफ घुमाते हैं.

यहाँ दूल्हा-दुल्हन नए रिवाज़ की परिभाषा गढ़ रहे हैं,
हर फेरे के साथ-साथ अपना 'घोषणा-पत्र' पढ़ रहे हैं.
जैसे कि 'अब एक-दूसरे के सहयोग से  ही दोनों आगे बढ़ेंगे,
इसलिए अगला चुनाव अलग-अलग सीटों से लड़ेंगे'
और 'बच्चे का नाम 'अजय' होगा या 'विजय' होगा,
ये भी दोनों परिवारों की संयुक्त बैठक में तय होगा'

फिर अग्नि को साक्षी मानकर दोनों ने गठबंधन का वचन लिया,
और घरवालों से जब आशीर्वाद माँगा, तो उनने भी सिर्फ 'आश्वासन' दिया.

अब ये विचार का विषय है कि ये शादी हुई या समझौता हुआ,
बहरहाल, अभी के लिए ये कार्यक्रम यहीं समाप्त हुआ.

PENNED BY: ADARSH JAIN

Wednesday 12 December 2018

जीत....कुशलता या विवशता ?

सुनहरी सी धूप हो या काला घना अंधकार,
है कुशलता या विवशता मेरी, यूँ जीतना हरबार.
 

मामूली सी एक बात पर, कभी कुछ दंगा जैसा हो गया,
पहलवान जैसे एक व्यक्ति से मेरा पंगा ऐसा हो गया.
कदकाठी और बल पर अपने, हाय वो कैसा अकड़ा था,
साहस देखो उस कायर का, उसने कॉलर मेरा पकड़ा था.
इतनी जिल्लत कैसे सहता, मैंने भी सीना तान दिया,
फिर हड्डी-पसली तोड़कर उसने, मुझको जीवन दान दिया.
भले जंग बाहर की हार गया पर जंग भीतर की जारी थी,
उसके प्रहार विफल करने की, मेरी हरसंभव तैयारी थी.
मन बना रणक्षेत्र मेरा, नाखून ख्यालों के निकल आये,
शांत-शांत सी साँसों में भी, लाल अंगारे जल आये.
काश उसके बल के आगे समर्पण न मैंने किया होता,
काश कि, उसकी उस चोट का, जवाब वैसा दिया होता,
काश काश के युद्ध में ही, मैंने पूरा कर लिया प्रतिकार,
है कुशलता या विवशता मेरी,  यूँ जीतना हरबार.

इन छोटी आँखों ने एक दफा, सपने बड़े देख लिए,
अपने भविष्य के माथे पर, स्वर्ण-मुकुट जड़े देख लिए,
फल बड़ा चाहा था तो परिश्रम भी बड़ा होना था,
ये वर्षों की तपस्या थी, नहीं बच्चों का खिलौना था.
अपने जीवन की ज़मीं पर मैं, बीज मेहनत के बोता था,
मैं सपनों में ही ज़िंदा था, उन्हीं में जागता सोता था
फिर नसीब ने रंग दिखाए, समय भी बड़ा क्रूर हुआ,
जितना निकट पहुँचा लक्ष्य के, उतना वो मुझसे दूर हुआ.
सुख के सारे साथियों ने ,भी साथ संकट में छोड़ दिया
पल पल पलती बाधाओं ने, हौंसला मेरा तोड़ दिया.
क्षमता की सीमा को अपनी,जल्द ही मैंने पहचान लिया,
अपनी औकात को ही फिर, अपनी हक़ीक़त मान लिया.
संतुष्टि का स्वांग रचा अब, घटाकर सपनों का आकार,
है कुशलता या विवशता मेरी, यूँ जीतना हरबार.

PENNED BY: ADARSH JAIN

Saturday 17 November 2018

गिरह पुरानी सुलझाते हैं..

तकरार हुई थी माना मैंने, पर संवाद रुकेगा कहाँ लिखा था,
उस रोज़ भी तेरी आँखों में, मुझे तो गुस्से वाला प्यार दिखा था,
तूने भी मेरे होठों पर कुछ बोल अधूरे देखे होंगे,
व्यर्थ विवाद से बचने के, मेरे प्रयास पूरे देखे होंगे,
फिर ये फूट की रेखा आखिर किसने, जाने क्यूँ खींची है!
तूने साँसें साधी हैं, या मैंने मुट्ठी भींची है,
मौन की खाई बीच हमारे या फिर तेरे वहम की है,
नफरत की ये दीवार क्यूँ है, क्या ये मेरे अहम् की है!
ख़ामोशी के ताले सारे, चल शब्दों से पिघलाते हैं,
गले लग जा ओ प्रिये, गिरह पुरानी सुलझाते हैं.

ईद, होली और दिवाली, आये और आकर चले गए,
सुलह के ये अवसर सारे, हमारी चुप्पियों से छले गए.
न पहल कभी की तूने, न मैं ही कभी कुछ कह पाया,
ठहरा रहा जल संबंधों का, किसी ओर न ये बह पाया.
याद तुम्हें अगर आये तो, स्मृतियाँ हमारे साथ की,
कान रखलो धड़कनों पर या नब्ज टटोलो हाथ की,
वही ठहाके और सिसकियाँ जरूर तुमको सुनाई देंगे,
पलकों ने जो संभाल रखे हैं, दृश्य वो सारे दिखाई देंगे.
बीते सब झगड़ों पर अपने, चल मिलके मुस्काते हैं,
गले लग जा ओ प्रिये, गिरह पुरानी सुलझाते हैं.

- आदर्श जैन

Friday 2 November 2018

जिधर देखते हैं...

कुछ इस तरह उसकी बंदगी का असर देखते हैं,
हम डर की निग़ाहों में भी डर देखते हैं,

जो मिलते हैं बुज़ुर्गों से तो देखते हैं उनके पाँव,
दुश्मन से जब मिलते हैं, तो सर देखते हैं.

जाने कैसे लोग लकीरों में मुक़द्दर ढूँढ़ लेते हैं,
हम माथे की शिकन में भी, ख़बर देखते हैं.

एक वो हैं जिनकी नींदें ताजमहल ने उड़ा रखी हैं,
एक हम हैं जो झुग्गियों में भी बसर देखतें हैं.

वो पूछ रहे थे कि यूँ आँखें बंद करके क्या देखते हैं,
हमने कह दिया 'घर' देखते हैं, जिधर देखते हैं.

- आदर्श जैन 

Saturday 13 October 2018

जश्न मनाओ, कि रात है!


क्यूँ जोड़ा जाता रहा है,
मौत को अँधेरे से और ज़िन्दगी को उजाले से,
क्यूँ होती है तुलना सदैव ही,
नेकी की सफ़ेद से और बदी की काले से.
साँझ ढलते ही परिंदे घरों को लौट जाते क्यूँ हैं,
लोग अक्सर रात से इतना घबराते क्यूँ हैं.
ये रात ही तो साक्षी है,
उस बुझती-टिमटिमाती लालटेन के विश्वास की,
जिसने झोपड़ी के असंभव अरमानों से लेकर,
प्रतिष्ठित भवनों के सम्मानों तक का सफर तय किया है.
ये रात ही तो पहचान है,
उन जुगनुओं के अस्तित्व की,
जिनने निराशा में भी आशा का जीवन जिया है.
ये जो सितारे दिन की रोशनी में नज़र आते नहीं,
उस अप्रत्यक्ष शक्ति से हैं,
जो मुश्किलों में ही नुमाया होती है,
ये जो चाँद प्रकाश-पुंज सा दिख रहा है,
और कुछ नहीं उस सामर्थ्य का ही तो मोती है.
गंभीरता से सोचो अगर,
तो सब नज़रिये की बात है,
प्रतिकूल ही कोई समय है,
प्रतिकूल कोई हालात हैं,
जश्न मनाओ, कि रात है,
जश्न मनाओ, कि रात है!

      -आदर्श जैन



Saturday 25 August 2018

सच्चे प्यार की खोज


मनुष्य बड़ा गतिशील प्राणी है. स्थिरता इसकी प्रकृति के विरूद्ध है. इसके मन के समुन्दर में निरंतर कुछ "तूफानी" करने की हिलोरें उठती रहती हैं. इसी अधीरता ने मनुष्य को अलग-अलग कालखण्डों में कई अनसुलझी गुत्थियाँ सुलझाने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया है. एक समय था जब 'सत्य की खोज', 'स्वयं की खोज' जैसी चीजें चलन में थी, वर्तमान समय में 'सच्चे प्यार की खोज' ट्रेंड कर रही है.आज के युवा के विषय में बात करें तो वे अक्सर whatsapp, facebook और instagram जैसी प्रयोगशालाओं में इसी शोधकार्य में व्यस्त पाए जाते हैं. इस शोध में कुछ चौकानें वाले खुलासे भी सामने आये हैं, जिसमें 'मुरलीधर श्रीकृष्ण' का इतिहास के सबसे पहले "stud" के रूप में उभरकर आना प्रमुख हैं.
जिसप्रकार संसार की हर बड़ी चीज के कई प्रकार होते है, उसी आधार पर इन 'सच्चे प्यार के खोजकर्ताओं', का भी वर्गीकरण किया गया है. पहले वे हैं जो निजी जीवन में शून्यता से निर्मित नए शून्य को भरने के लिए इस क्षेत्र में हैं. ये वे लोग होते है जो 'patch-up' और 'breakup' के 'deadlock' में फसें हुए हैं और अंत में इस मोहजाल से ऊपर उठना ही इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया है. शायद इसी प्रक्रिया को शास्त्रों में वैराग्य कहा गया है. दूसरा वर्ग कवियों, लेखकों और गायकों का है जो किसी प्रकार बस दिल तुड़वाने की कोशिश में लगे हुए हैं. इन्हें लगता है कि अच्छा कलाकार बनने के लिए दिल तुड़वाना उतना ही आवश्यक है जितना चाय बनाने के लिए चायपत्ती और सरकारी दफ्तरों में काम निकलवाने के लिए हरी पत्ती. हालांकि इस अनुभव से गुजरने के बाद कब कौन कलाकार देवदास में परिवर्तित हो जाये, कहना मुश्किल है. इनके अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो सिर्फ 'peer-pressure' की वजह से सच्चे प्यार की खोज में पूरी लगन, ईमानदारी एवं कर्मठता के साथ लगा हुआ है. मित्रों के जीवन में नए साथी के आ जाने के कारण उनकी इनके प्रति लगातार घटती प्राथमिकता इन्हें इस क्रिया के लिए मजबूर करती है. अक्सर ठुकराए जाने पर ये हीनता की भावना का शिकार हो जाते हैं और प्रतिशोध कि अग्नि में जलते रहते है जिससे उभरने का एक मात्र यही उपाय इन्हें नजर आता है. जो चौथे समूह के लोग हैं उन्हें वैज्ञानिक भाषा में 'vela' कहा जाता है. ये वे लोग है जिन्हे सच्चे प्यार की खोज शायद इसलिए है क्यूंकि उनके पास करने के लिए और कुछ नहीं है और किसी बुद्धिजीवी ने इन्हें बता दिए है कि ऐसा करना 'cool' होता है. इनके पास इतना खाली समय है कि ये अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा सही शिकार के चयन में ही लगा देते हैं बाकी का समय उसी शिकार को भेजे गए प्रेम सन्देश पर शायद कभी न आने वाली प्रतिक्रिया के इंतज़ार में.
इस मुहिम से जुड़े लोगों द्वारा की जा रही कठिन तपस्या का नतीजा जो भी निकले मगर इसमें सम्मलित लोगों की संख्या को देखते हुए इसे 'राष्ट्रीय रोजगार' कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी. हमारी राय अगर ली जाये तो आज के समय में सच्चे प्यार की कल्पना करना 'lays' के पैकेट से पेट भरने की उम्मीद करने जैसा है जिसमे चिप्स से अधिक हवा है. अब इसमें ये बताना कि यहाँ चिप्स का तात्पर्य प्यार से है और हवा का संकेत हवस की ओर है, पाठकों की समझदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा होगा.

 - आदर्श जैन
-           

Wednesday 1 August 2018

विज्ञापनों में समाचार


विज्ञापनों में समाचार

झूठ सच से अधिक असरदार हो जाये, तो कैसा हो,
अफवाहें ही ख़बरों का आधार हो जाये, तो कैसा हो,
समाचारों में विज्ञापन तो बहुत देखे होंगे,
सोचिये अगर, विज्ञापनों में समाचार हो जाये तो कैसा हो.
सोचिये अगर आप ख़बरों के लिए न्यूज़ चैनल खोलें,
और बड़े उत्साहित स्वर में उधर से कोई बोले,

नमस्कार, आभार , अभिनन्दन !
sponsored by बंदरछाप दंतमंजन,
विज्ञापनों की दुनिया में हम आपका भरपूर स्वागत है करते हैं,
और दुनियाभर के विज्ञापन सबसे पहले आप तक पहुंचाने का दम भरते हैं.

आज फिर पूरे दिन वही विज्ञापन आपको बार-बार दिखाए जाएंगे,
और ये बताते हुए हमें बेहद खेद है,
कि बीच-बीच में थोड़े बहुत समाचार भी आएँगे.

तो हमारे सभी विज्ञापन-प्रेमी दर्शक, थाम कर बैठें अपनी साँस,
पहली खबर is sponsored by पतंजलि आयुर्वेदिक च्यवनप्राश.

भारत के वीर जवानों ने सीमा पार जाकर, दुश्मनों को बुरी धोया,
और दिखाया अपने पराक्रम का करिश्मा,
इस धुलाई के प्रायोजक थे - Nirma
washing powder Nirma ,दूध-सी सफेदी निरमा से आये,
रंगीन कपडा भी खिल-खिल जाये.

Whatsapp नाम की विश्वसनीय पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार,
और ज्यादा नासूर होता जा रहा है अडवाणी जी का दर्द,
इतना कि शब्दों में कहा न जाये,
the दर्द is sponsored by Alpenliebe - जी ललचाये रहा ना जाये.

कांग्रेस के माननीय युवा नेता राहुल गाँधी ने अपनी माँ से पूछा,
विपक्षी नेता मुझे पप्पू क्यों बुलाते हैं , कारण बताइये?
माँ के जवाब के प्रायोजक हैं - मेन्टोस
Mentos  खाइये दिमाग की बत्ती जलाइए.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और अपने ही बच्चों के बाप अरविन्द केजरीवाल ने,
फिर लगाए प्रधानसेवक पर गंभीर आरोप, कहा
"AG , OG , सुनोजी, मोदीजी ! आप अपनी सत्ता पर इतना ना गुरूर करो"
आरोपों के सह-प्रायोजक हैं - vicks
vicks की गोली खाओ खिचखिच दूर करो.

हमारे संवाददाता फलाना-ढिकाना ने अपनी जान पर खेलकर,
देश के प्रधानमंत्री से नोटेबंदी के कारणों पर सवाल किये और पूछा,
"क्या इस साहस भरे निर्णय के पीछे भी आपकी 56 इंच के छाती हैं ? ",
माननीय प्रधानमंत्री चुप रहे, उनकी चुप्पी के प्रायोजक हैं-
Center Fresh chewing gum - इसे खाने से ज़ुबान पे लगाम लग जाती है.

सूत्रों के हवाले से खबर आयी है कि the king of good times,
विजय माल्या को खुद नहीं थी अपने कर्जे की भनक,
उनकी वफ़ादारी is cosponsored by 'TATA' नमक- देश का नमक.

पिछले कई दिनों से वेंटीलेटर पर रखे रूपए की स्थिति और हुई कमजोर,
हालत बिगड़ने की आशंका पर अर्थशास्त्रियों ने कहा, "हाँ" ,
रूपए के स्वस्थ्य के सह प्रायोजक थे- lifebuoy
lifebuoy हैं जहाँ, तंदरूस्ती है वहाँ.

हमारी अगली बुलेटिन में भी समाचार sponsors की मिलीभगत से होंगे,
सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि,
आगे के विज्ञापनों में समाचार खेल जगत से होंगे.

बिरजू चायवाले की दुकान पर बैठे,
 क्रिकेट विशषज्ञों के विचार-विमर्श से निष्कर्ष निकला है कि,
Virat भैया का प्रदर्शन होता है खराब, जब-जब अनुष्का भाभी होती है आसपास,
इन नजदीकयों के sponsor थे, McDowells No.1,
असली यारी का No.1 अहसास.

भारत की पाकिस्तान पर धमाकेदार जीत पर,
भारत के कप्तान ने पाकिस्तान को सन्देश देते हुए कहा, "दूधो नहाओं, पूतो फलो",
इस आशीर्वाद के प्रायोजक थे - Lux Cozi
अपना लक पहन के चलो.

हम ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं, पान मसाला विमल का,
और अब वक़्त हो चला है, आज के राशिफल का.

स्वयं बेरोजगारी की मार से जूझ रहे, इंजीनियर से बाबा बने,
वशीकरण महाराज ने पंचमुखी रुद्राक्ष को बताया कालसर्प से बचने का उपाय,
और दावा किया कि इसने कई भक्तों के अँधेरे जीवन में किया है उजाला,
बाबा का अन्धविश्वास is sponsored by Dish TV,
इसको लगा डाला तो Life झिंगालाला.

विज्ञापनों के इस आयोजन की आखिरी रसम पर,
अब नज़र डालते हैं आज के मौसम पर.

उत्तर भारत में देरी से पहुँचने पर पूछे गए सवालों के जवाब में,
मानसून ने बड़ी बेरुखी से कहा कि,
"यार, मेरे घर से उत्तर भारत के बीच बहुत फासला है, "
मानसून के इस आलास के प्रायोजक हैं- Rupa Frontline,
ये आराम का मामला है.

आज के विज्ञापानों में इतना ही, इसके आगे ना हमसे कोई आस करें,
Sponsored by - घड़ी डिटर्जेंट, पहले इस्तेमाल करें फिर विशवास करें.


-आदर्श जैन

Sunday 24 June 2018

बीच बाज़ार में..

हंगामा नहीं था, फिर भी मची थी हलचल, आज बीच बाज़ार में,
दिनदहाड़े हुए थे कई क़त्ल,आज बीच बाज़ार में,
वो परी थी, अप्सरा थी, या थी कोई मेनका,
जब गुज़री खुशबुओं के बादल ओढ़कर,
अच्छे-अच्छे विश्वामित्र भी गए फिसल, आज बीच बाज़ार में.

ज्वेलरी वाले सोनीजी या कॉस्मेटिक्स वाले लालाजी,
फल वाला बनवारी या कपड़े वाले निराला जी  ,
या चाय वाला बिरजू जिसकी नुक्कड़ पर दुकान है,
या चौबेजी मिठाई वाले, जिनके मिलावटी पकवान हैं.
इन सभी को वो मल्लिका-ए-हुस्न इतनी बेजोड़ लग गयी,
कि सभी दुकानदारों में उसे अपनी दुकान पर बुलाने क होड़ लग गई.
फिर तो न किसी ने फिक्र की मर्यादा की,
न बाज़ार के तक़ाज़ों का ही कुछ ख़याल किया,
उसे कुछ चाहिए भी या नहीं , ये भी नहीं किसी ने सवाल किया.

इससे पहले कोई और उसे अपनी दूकान पर बुलाये,
ज्वेलरी वाले सोनीजी भीतर से ही चिल्लाये,
हे ! चाँदी जैसी काया वाली,
हे! माणिक जैसी माया वाली,
ये तेरे सौंदर्य का सम्मोहन है, या कोई जादू-टोना है,
तू जो भी है, कसम हीरे की, २४-कैरट सोना है.
तेरे रूप के मोहपाश में ख्वाब सुनहरे सज रहे है,
जब से तुझको देखा  है, दिल में घुंघरू बज रहे हैं.
कि छनकने वाली पायल है, रत्नों वाला हार भी है,
तेरे लिए विशेष छूट है, तेरे लिए उपहार भी है,
फ़िरोज़ाबाद की चूड़ियाँ भी हैं, कंगन भी  हैं देहली वाले,
एक बार तू आजा प्रिय, झुमके भी  हैं बरेली वाले.

इस डर से कि कहीं ये लक्ष्मी ,
सोनीजी की दूकान पर न चली जाये,
कपड़े वाले निराला जी ने भी निराले सुर लगाए.

कि 'निराला' उसको भी हीरो बना दे, जो निपट अनाड़ी हो,
और तुम तो रेशम सी हो नाज़ुक, जैसे बनारसी साड़ी हो,
तुम सूती भी ओढ़ो अगर तो मखमल जैसा खिल जाये,
नाम बदलकर रख देना, अगर कहीं और ऐसा मिल जाये.
आधुनिक परिधान भी हैं, पारम्परिक लहँगे भी,
सैकड़ों मनमोहक डिज़ाइन हैं, सस्ते भी  हैं, महंगे भी. .
फिक्र न करो पसंद की तुम, मैं "मैचिंग" मिलवा दूंगा,
तुम्हार खातिर ओ प्रिय!, मैं डिस्काउंट भी दिलवा दूंगा.

अपनी भावनाओं में निराला जी ज्यादा ही बहने वाले थे,
मगर कॉस्मेटिक्स वाले लालजी भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.
५५ साल क उम्र में भी, उनमें जवानी की भूख झलकती थी ,
इश्क़ का जुनूँ कायम था, भले मुँह से लार टपकती थी.
पहले तो उन्होंने रंगीन होना चाहा,
मगर फिर गंभीरता से कहा,

"माना कि रूपवती हो, सुंदरता की खान हो तुम,
आकर्षक हो, मनमोहक हो, धड़कते दिलों की जान हो तुम,
भले कितनी ही खूबसूरत हो, पर बात ज़रूर जान लो,
ये काया एक दिन ढल जाएगी , ये कटु सत्य भी मान लो.
मगर मेकअप का सामान जो दुकान से मेरी ले जाओगी,
तो फिर जीवन में, कसम 'बोरो प्लस' की,
कभी बुढ़ापा नहीं देख पाओगी  .
लिपस्टिक ले जाओ, नेल-पॉलिश ले जाओ,
या ले जाओ आाँखों का मसकारा,
एक बार जो इस्तेमाल करोगी , तो फिर मांगोगी दोबारा."

चौबेजी दूर से ही सारा नज़ारा देख रहे थे,
चुपचाप खड़े होकर अपनी आाँखें सेंक रहे थे,
फिर कारोबार के इस कर्मयुद्ध में, वे दिल के द्वार खोल गए,
लालाजी की बात पर वे, बीच में ही बोल गए,
"हे जानेमन! तेरा ध्यान किधर है, चौबे मिठाई वाला इधर है,
जब से तेरा दीदार हुआ है, शुगर हुई है या प्यार हुआ है,
जलेबी जैसी तेरी कमर देखकर, मेरे दिल में पटाखे छूट रहे हैं,
अब क्या बताऊँ मन में मेरे, बूंदी के लड्डू फूट रहे हैं
मन करता है, मोहल्ले में सबको, दही की लस्सी पिलवा दूँ,
एक बार जो तू दुकान पर आजा, तो काजू कतली खिलवा दूँ!."

ये सुनकर बोला फलवाला बनवारी,
कि हे चीकू सी चुलबुली, हे स्ट्रॉबेरी सी प्यारी,
संतरे जैसा रंग है तेरा, लीची जैसे नैन,
अंगूर सी तू चंचल है, अनार सी बेचैन.
क्या कहूँ, मेरी नज़र में ,तू पूरी फ्रूट सलाद है,
मेरी दुकान पर आजा, बस इतनी सी फरियाद है.

तभी वहाँ किसी व्यक्ति ने थोड़ी समझदारी दिखाई,
उससे पूछने की ज़हमत उठाई,
कि हे मोहतरमा! किस सोच में या किस विचार में हैं,
क्यों खड़ी आप बीच बाजार में हैं?
उसके जवाब ने दिल कईयों के तोड़ दिए,
जो अरमान उन्होंने पाल लिए थे, वो वहीं अधूरे छोड़ दिए.
जब उसने कहा, कि हैरत हुई देखकर इस बाजार के व्यापारी,
जाने क्यों पीछे पड़े हैं, जब नहीं करनी कुछ खरीददारी,
अब तो मैं इनके इरादों से भी डर रही हूँ,
इतनी देर से खड़े होकर,यहाँ इंतज़ार बॉयफ्रेंड का कर रही हूँ.

PENNED BY: ADARSH JAIN

Sunday 10 June 2018

अस्पताल

जब वक़्त की चौसर पर खेली, हर बाज़ी हारी लगने लगी,
ज़िंदगी सँवारने में ही इतना मसरूफ़ रहा,
कि कमज़ोर मौत की तैयारी लगने लगी.

जब लगा जैसे मस्तिष्क जंगल हो और नसों में आग लगने वाली हो,
जैसे वर्षो से रोक कर रखी टीस की बाल्टी, बस अभी झलकने वाली हो.

जब जवाब दुनिया के सवाली लगने लगे,
मंदिर मज़हब सब ख़याली लगने लगे,
तब ज़िंदगी और मौत का कमाल देखने,
इन मुखौटों में छिपे चेहरों का असल हाल देखने,
मैं एक रोज़ पहुँच गया अस्पताल देखने.

खुली आँखों में खूंखार सपनों जैसे,
मुझे वहाँ कई पराये नज़र आए, अपनो जैसे.

जैसे एक बूढ़ा जो दूर किसी स्ट्रेचर पर अकेला पड़ा चीख रहा था,
शायद अपनी आखिरी साँसों में ज़िन्दगी का मर्म सीख रहा था,
मुझे उसके आसपास मौत के फ़रिश्तो के पहरे दिखाई दिए,
उसकी आँखों में घाव मुझे, शरीर से गहरे दिखाई दिए.
मैंने पूछा तो उसने बताया कि,
उसके चार बेटे जो रोज़ उससे मिलने आते थे,
अहसान से ही सही पर हाल पूछ जाते थे,
उनमें से आज कोई नहीं आया,
किसी ने भी उसे आज, 'बाबा' नहीं बुलाया.
कहीं ये उस हस्ताक्षार का परिणाम तो नहीं,
जो कल उसने उन कागज़ों पर किया था,
कहीं यहीं कारण तो नहीं,
कि उसने आज दवाई का घूँट भी खून के संग पिया था.

तभी मुझे बेबसी और बेकसी में लिपटा एक अक्स नज़र आया,
पास ही के बेड पर लेटा, पहचाना-सा एक शख्स नज़र आया,
'मौत' साफ़ थी उसके घावों में, पसीनों में,
ज़िन्दगी उलझी हुई थी उसकी तारों में, मशीनों में,
बड़ी कोशिशों से बोला उसका हर लफ्ज़, खाँसी बनकर निकलता था,
दर्द इतना था कि घरवालों की आँखों से भी झलकता था.
वो वही था शायद जिसे नसीहत का जरिया बनाया जाता है,
वो वही 'मुकेश' था, जिसे फिल्मों से पहले दिखाया जाता है.

आँसुओं की इस खामोश चीत्कार के बीच, मेरा ध्यान दरवाज़े की ओर गया,
जब खून से लिपटा हुआ एक नौजवान, वहाँ से लाया गया.  
वो वही नौजवान था जो अभी-अभी सड़क पर, 'हवा' सरीका बह के निकला था,
"माँ, मैं बस अभी आया", घर से कह के निकला था.
वो वही नौजवान था, जो जल्दबाज़ी में अधूरी खाने कि प्लेट छोड़ आया था,
वो वही नौजवान था, जो जल्दबाज़ी में 'हेलमेट' छोड़ आया था.

वहाँ लोगो की चीखों में दर्द था, बेचैनी थी, लापरवाही थी,
वहाँ डॉक्टर के हाथों में 'स्टेथोस्कोप' नहीं, ज़िन्दगी में 'ज़िन्दगी' लिखने वाली स्याही थी.

किसी को डॉक्टर पर भरोसा था,
तो किसी को खुदा से आखिरी उम्मीद थी,
पर ज़िन्दगी जाने किसकी मुरीद थी .
इतने में वहाँ बिजली चली गयी और चारों तरफ अँधियारा हो गया,
तभी किसी ने कहा कि,
बेड नं. 7 पर जो था , वो जो भी था, भगवान को प्यारा हो गया.
किसके साथ है वो, वो लाश जो वहाँ उस बेड पर लेटी हुई है,
तभी किसी नर्स ने एक व्यक्ति को कुछ किलकारियाँ सौपते हुए कहा,
"मुबारक हो, बेटी हुई है."

मुझे लगा जैसे ज़िन्दगी के मसीहों ने अनूठा कोई दांव चल दिया हो,
लगा जैसे अभी-अभी रूह ने जिस्म बदल लिया हो.
पर शायद नियति के लेखकों से कहीं कोई ढील हो गयी,
ये सुनहरी सुबह जल्द ही स्याह रात में तब्दील हो गयी.

मर्दों की पूरी ज़मात को, मारे लज्जा के तार-तार होना पड़ा,
जब किसी ने कहा,
फिर किसी दामिनी को, फिर किसी बस में, शर्मसार होना पड़ा.
वो अभी- अभी इसी अस्पताल में लायी गयी है,
और ये दास्तां भी उसके किसी पुरुष मित्र द्वारा बताई गयी है.

ऐसा लगा जैसे इंसानियत के नाम पर धिक्कार,
इन दरिंदों से बढ़कर कोई खलनायक नहीं हैं,
लगा जैसे कह दूँ उस नवजात बेटी से,
"ये, दुनिया ही तेरे लायक नहीं है."

मुझे वहाँ ऐसे ही कई और मरीज़ नज़र,
कुछ ज़िन्दगी को तो कुछ मौत अजीज़ नज़र आये.
ज़िन्दगी की दिशाहीन दौड़ में, किसी के लिए ये एक पड़ाव था,
तो किसी के लिए आखिरी अंजाम था,
ना जाने क्यूँ मैं, रेशमी दुनिया के कुछ खौफनाक पहलुओं से अंजान था.
मैं अंजान था एक ऐसी जगह से, जहाँ मज़हब के दृढ़ कायदे अपनी हदों से पिघलते हैं,
जहाँ शमसान की अर्थियां और कब्रिस्तान के जनाज़े एक ही छत से निकलते हैं.

दुनिया के कई और राज़ तुम्हे पता चलेंगे, जब तुम मरीज़ों का हाल देखोगे,
कहीं कहीं पर ख़ुशी, तो कहीं पर मलाल देखोगे.
मैं गया था तो एक 'नज़्म' ले आया हूँ,

तुम्हे भी कुछ मिल जाएगा, जब तुम अस्पताल देखोगे.

PENNED BY : ADARSH JAIN

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...