Saturday 12 December 2020

जब जीवन में कुछ....

 
जब जीवन में कुछ अच्छा करने लगता हूँ,
अपनी फितरत से धोखा करने लगता हूँ,

अव्वल सबका झगड़ा सुलझाने जाता हूँ,
फिर खुद ही सबसे झगड़ा करने लगता हूँ। 

हर काम अधूरा करने की कैसी ज़िद है,
एक नहीं होता, अगला करने लगता हूँ।

पहले ख्वाबों के चित्र, रंगीन बनाता हूँ,
फिर धीरे धीरे धुँधला करने लगता हूँ।

दूर कभी कुछ यादों से भागा करता हूँ,
फिर खुद ही उनका पीछा करने लगता हूँ।

बाल सँवारने की कुछ तो मेरी आदत है,
कुछ तुमसे मिलकर ज़्यादा करने लगता हूँ।

- आदर्श जैन

Sunday 21 June 2020

जीवन तेरी शर्तों में..

जैसे बीतीं सारी विपदा,
ये संकट भी टल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

आंधी में इस बार कि माना,
सब टूट गए घर संबल के,
नूर भरी कुछ आंखों में भी,
कैसे भीषण सपने झलके,
जब जब सिसकी धरती पहले,
नभ ने रोकर प्यास बुझाई,
लगता है अब सारे आंसू,
जैसे सूख गए हैं बादल के।

निश्चित है इस मुश्किल में भी,
रहकर सहज निकल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

भावी जीवन अस्थिर है और,
घाव हरे हैं सब यादों के,
कटुता के प्रतिनिधि बतलाते,
हैं अर्थ मधुर संवादों के।
घोर निराशा मन में बैठी,
चारों ओर तिमिर दिखता है,
नामुमकिन है भाव समझना,
मुस्कान निमित अवसादों के।

पर सूरज की संताने हैं,
अंधियारों में पल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

जहर घुला है हर मौसम में ,
धरती भी हमसे रूठी है,
भय पसरा है हर आंगन में,
और चाल प्रकृति की टूटी है,
बर्बादी की सारी खबरें,
सारी ही अटकल सच्ची हैं,
जो जीवन को आस दिलाती,
बात वही बस इक झूठी है।

ज़ख्मी कुदरत के घावों पर,
मिलकर मरहम मल जाएंगे,
जीवन तेरी शर्तों में हम,
ढलते ढलते ढल जाएंगे।

- आदर्श जैन

Monday 25 May 2020

पाँव जीवित थे हमारे...


राह वो मुश्किल बड़ी थी,
आपदा सम्मुख खड़ी थी,
हम मगर चलते रहे थे,
दर्द को छलते रहे थे।

सोचकर अब से हसेंगे,
क्रूर किस्मत के सितारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

शहर से इक भोर उठकर,
आ गए थे हम सड़क पर,
वेदना, पीड़ा, उपेक्षा,
और लेकर गम सड़क पर,
उम्र भर की साधना का,
सोचते क्या फल मिला था,
भूख से बच्चे हमारे,
तोड़ते थे दम सड़क पर।

लाद जीवन बोझ सर पर,
हम खड़े आशा किनारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

कौन सुनता याचनाएं,
शोक सुनने कौन बैठे,
सब सियासी लोभ पाले,
रोटियां खा मौन बैठे,
डूब जाने से उचित था,
सांस थामे युद्ध करना,
देखते इकलव्य को पर,
मूक बनकर द्रोण बैठे।

हौंसला लेकर उठे थे,
कर्म कौशल के सहारे,
प्राण भी जब मर चुके थे,
पाँव जीवित थे हमारे।

- आदर्श जैन

Sunday 26 April 2020

उदास रहा जाए...

क्यूँ ओढ़कर सदा झूठा लिबास रहा जाए,
उदासी का दौर है, क्यूँ न उदास रहा जाए,

न कोई मजलिस, न दुनिया, न शोर शराबा,
अपनी खातिर सही, अपने पास रहा जाए।

बुझ गई फिर कैसा मकसद, किसकी चाह,
मज़ा तो है जब जलती हुई प्यास रहा जाए।

मारते - मारते चोंच, कभी तो टूटेंगी सलाखें,
क़फ़स में किसी परिंदे का विश्वास रहा जाए।

रहकर अजनबी भी निभाये जाते हैं ताल्लुक़,
हमदर्दी होने ज़रूरी नहीं कि खास रहा जाए।

क्यूँ चाहते हो भरा होना, हवा से या पानी से,
क्या बुरा है कि अगर खाली गिलास रहा जाए।

 
- आदर्श जैन

Saturday 4 April 2020

ऐ कबूतर! तेरे हाथों...

ऐ कबूतर, तेरे हाथों खुदा को पैग़ाम करना हैं,
ये कैद से हमें आज़ाद करे, हमें काम करना है,

नींद आती है तो अब, बेचैनी से जाग उठते हैं,
हम जो कहते थे ज़िंदगी भर आराम करना है।

एक बात ये कि अगले पल का भी ऐतबार नहीं,
एक बात और कि सालों का इंतजाम करना है।

सुनते हैं कुदरत की नाराज़गी का कहर टूटा है,
बुजुर्गों की बातों का अब से एहतराम करना है।

लादकर जो ख्वाबों को कंधों पर, चले जा रहे हैं,
सारी मंजिलें हीं उन मुसाफिरों के नाम करना है।

ऐसे वक्त में भी जो बनकर ढाल, सामने खड़े हैं,
ऐसे फौलादियों को खड़े होकर सलाम करना है।

- आदर्श जैन

Monday 30 March 2020

स्पीड ब्रेकर

ताकि,
अहंकार में दौड़ती हुई कारें,
हद में रखें अपनी रफ़्तारें।
ताकि,
आंधियों से होड़ लगातीं मोटरसाइकिलें,
दुर्घटनाओं से न जा मिलें।
ताकि,
मदहोश होकर चलते ट्रक,
देखते हुए चलें सड़क।
ताकि,
मंजिल की आरज़ू लेकर निकली गाड़ियां
न भूल जाएं खयाल सफर का,
ज़रूरी है रास्तों में,
होना स्पीड ब्रेकर का।

ताकि,
दिन-ब -दिन विषेला होता स्वार्थ,
प्रकृति को न पहुंचा पाए आघात।
ताकि,
अमरता को प्राप्त करता लालच,
सारे संसाधनों को न कर दे खर्च।
ताकि,
नियंत्रण से बाहर होता पाप,
न ले आए प्रलयकारी संताप।
ताकि,
महत्त्व समझ पाए इंसान,
स्वामित्व और सहभागिता के अंतर का,
बहुत जरूरी है ज़िन्दगी में,
होना स्पीड ब्रेकर का।

- आदर्श जैन

Saturday 28 March 2020

बस और ट्रक: एक प्रेमकथा

किसी बड़े आम दिन की,
बड़ी खास शाम में,
मध्यप्रदेश राज्य परिवहन की एक बस,
खड़ी थी ट्रैफिक जाम में।
गाड़ियों की कतार थी लंबी,
इसलिए इंतजार भी बड़ा था,
वहीं, All India Permit वाला एक ट्रक,
बस के ठीक आगे खड़ा था।
बस ने देखा उसे,
अपनी Headlights की नज़र से,
वहीं उसने भी खूब निहारा बस को,
अपने Rear view Mirror से,
तो नई - नई जवानी का,
नया-नया ये खुमार था,
बस और ट्रक के बीच शायद,
पहली नजर वाला प्यार था।
बस ट्रक के,
Advertisements वाले टैटू पर फिदा थी
वहीं ट्रक को भायी बस की,
सादगी वाली अदा थी।
न कोई साज - श्रृंगार,
फिर भी कितनी आकर्षक,
खयालों के बादलों में कहीं,
खो गया था ट्रक,
इतना कि उसने Family Planning के,
सारे आयाम तक सोच लिए,
यहाँ तक कि होने वाले दोपहिया वाहनों के,
नाम तक सोच लिए।
होश आया तो पाया,
पहियों के नीचे तो ज़मीन है,
वहीं टैटू से नज़र हटी तो बस ने देखा,
उसका प्यार शायरियों का भी शौकीन है।
इश्क़ का रंग बस पर,
तब और गहरा चढ़ा,
जब उसने ट्रक पर ये लिखा पढ़ा,
कि " चलती है गाड़ी तो उड़ती है धूल,
मेरी जान का मुखड़ा जैसे गुलाब का फूल।"
" तेरी लिए गोरी,
लड़ जाऊंगा संसार से,
हमारी मोहब्बत को दुनियावालों,
देखो मगर प्यार से।"
बस ने मुस्कुराकर अपनी Headlights को झुकाया,
कि वहीं ट्रक पर ये लिखा पाया,
"फूलों की माला, मालाओं का हार हो जाएगा,
हंस मत पहली, प्यार हो जाएगा।"
इस नयन - विनिमय में न जाने कब,
शाम का सूरज भी ढल गया।
समय कुछ ऐसा बीता,
कि रुका हुआ जाम आगे बढ़ गया।
इसके बाद वे दोनों,
अपने-अपने रास्तों पर जाने लगे,
इधर बस महोदया ने Horn बजाया,
और उधर श्रीमान ट्रक,
विदाई का संगीत बजाने लगे।
अपनी steering पर रखकर पत्थर,
बामुश्किल बस आगे बढ़ी,
तभी उसकी नजर,
ट्रक पर लिखी एक और शायरी पर पड़ी।
लिखा था,
"ऐ बुलबुल शोर मत कर,
आज ग़म की रात है,
आयेंगे तेरे शहर में बस,
दो-चार दिन की बात है।"
इस बात को,
ट्रक का दिया हुआ वादा समझकर,
बस ने देखा उसे आखिरी बार,
पीछे पलटकर।
इस उम्मीद में कि अगली बार,
खुलकर Engine से Engine की बात होगी,
किसी नुक्कड़, चौराहे, हाईवे या जाम में,
फिर जरूर कोई मुलाकात होगी।
इस मुलाकात का सपना पर,
हकीकत से बहुत दूर था,
किस्मत को तो शायद,
कुछ और ही मंजूर था।
किसने सोचा था कि अगली सुबह,
भयानक सांप्रदायिक दंगे होंगे,
इंसान के हाथ इंसान के खून से रंगे होंगे।
पूरा मुल्क हिंसा की आग में जल रहा होगा,
दिलों में आक्रोश होगा,
नसों में लहू उबल रहा होगा।
नफ़रत की आंधी मानवता को निगल जाएगी,
किसने सोचा था इन दंगो में,
वो बस भी जल जाएगी।
ट्रक को जब खबर लगी,
तो उसकी आरज़ू मानो Diesel में बह गई,
और ये प्रेम कथा भी,
सभी महान प्रेम कथाओं की तरह,
अधूरी ही रह गई।

- आदर्श जैन

Tuesday 24 March 2020

छंद


पशु पालो, पक्षी पालो, भरम न पालो कोई,
कैसे सोचा आपने कि, हम टिक जाएंगे।

कल उनके साथ थे, आज इनके पास हैं,
तीसरे के संग हम, कल दिख जाएंगे।

लोगों से किए वादों को, चुनावों के संवादों को,
हम जैसे राजनेता, झूठ लिख जाएंगे।

रुपया ही ईमान है,  पैसा ही भगवान है,
ज़्यादा देगा कोई गर, फिर बिक जाएंगे।

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चेहरा जैसे चंद्रमा, सलोनी भाव - भंगिमा,
कैसी सुंदर उसकी, चाल मत पूछिए।

नयनों से हंसकर, सादगी से सजकर
फेंका कैसा मोहनीय, जाल मत पूछिए।

होता कैसा प्रेम - असर, है पूछना ही अगर,
हर बात में बाल की, खाल मत पूछिए।

जिसके प्रेम में मिटे, उसी के प्रेम में पिटे,
कैसा है अब हमारा, हाल मत पूछिए।

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कहते हो भूल जाएँ, कहो कैसे भूल जाएँ,
बार बार उन्हें याद, करती हिचकियां।

भावना शून्य मन में, अतीत के गगन में,
स्मृतियों के नए रंग, भरती हिचकियां।

किस्मत के सितारों से, आशंकित विचारों से,
पल पल हर पल, डरती हिचकियां।

वर्तमान से हारती, भविष्य को नकारती,
आशाओं से ही जीवित, मरती हिचकियां।

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- आदर्श जैन

Thursday 5 March 2020

वो आंसू अचानक क्यूं बहने लगे...

हर दुख में जो आंखों में ठहरे रहे,
वो आँसू अचानक, क्यूँ बहने लगे।

ये सपनों की बातों में, आकर हम,
प्रीत के इस शहर में, चले आए थे।
तुम्हें पाने की ज़िद ने उजाड़ा हमें,
आए थे हम यहां तो, भले आए थे।

हम में तो हमेशा से,  हम ही रहे,
तुम न जाने कबसे, फिर रहने लगे।

हैं सितारे हमारे, संग जागे हुए,
क्या होगा कि जब हम सो जायेंगे।
थामे रहेंगे क्या रात को ये सदा,
भोर होते ही या फिर, खो जाएंगे।

ये प्रश्न जो तुम्हारी प्रतीक्षा में थे,
आते ही तुम्हारे, क्यूं ढहने लगे ।

ये तुम्हारे बिना जीने की कल्पना,
मर जाने से बेशक, मुश्किल तो है,
नियति ने ही माना दूर हमें किया,
मौन इसमें हमारा, शामिल तो है।

थे अधर, जो सालों से साधे हुए,
अब नयन क्यूं वो बातें, कहने लगे।

- आदर्श जैन

Tuesday 4 February 2020

आओगे ना !

हर मुसीबत में हमको बचाने, आओगे ना,
सचमुच अपना वादा निभाने, आओगे ना,

जाहिर है, इश्क़ हुआ है तो दिल भी टूटेगा,
ऎ दोस्त! तुम शराब तो पिलाने, आओगे ना।

क्या ज़ुल्म है तुम्हारा यूं रूठकर चले जाना,
अरे, हमारी गलती तो बताने, आओगे ना।

हमसे बेहतर दूसरा कोई, मिल जाएगा तुम्हें,
तुम भी तो बस यही समझाने, आओगे ना।

तुम्हारे आने की आस में अब भी जल रहे हैं,
इन नादान दियों को तो बुझाने, आओगे ना।

हमारे साथ की वो यादें तुम्हारे साथ रह गई हैं,
उन्हें लौटाने ही सही, इस बहाने, आओगे ना।

- आदर्श जैन

Wednesday 15 January 2020

जी कमाल !

अफ़वाहों की खबरें, खबरों का अकाल, जी कमाल!
अजी, क्या पूछा आपने?मुल्क का हाल? जी कमाल!

हम चाहते भी तो कैसे समझते, कोई हसरत आपकी,
आपके ही नियम फिर आपका ही बवाल, जी कमाल!

ना उलझते तो क्या करते बेचारे, शब्दों के सच्चे मानी,
झूठ का बिछाया आपने, ऐसा सुंदर जाल, जी कमाल!

'हमसे बेहतर भी कोई, क्या शुभचिंतक रहा है आपका?'
एक तो आपका अंदाज़ ऊपर से ये सवाल, जी कमाल!

जानते है कि आज नहीं तो कल, पकड़ा जाएगा ढोंग,
फिर भी चल पड़ते है कौवे, हंस की चाल, जी कमाल!

- आदर्श जैन

Friday 3 January 2020

बस कुछ दूर और...

एक पेड़ की छांव में ,
धूप से हताश होकर,
बैठ गया एक मुसाफिर,
सफर से उदास होकर।
तभी बोला एक तोता,
पास ही के शजर से,
कि ये नहीं वो मंज़िल है,
जिसे पाने निकले थे घर से।
ये कामयाबी नहीं है वो,
असल मुकाम हुज़ूर और है,
जिस सुकून को खोज रहे हो,
वो बस कुछ दूर और है।।
हिम्मत जुटाई, हौंसला पाया,
चल पड़ा आगे मुसाफिर,
बहुत दूर तक निकल आया,
पीछे न देखा मुड़कर फिर।
पर जाना कहां था भूल गया,
'बस कुछ दूर और' याद रहा,
आगे बढ़ने की कश्मकश में,
सफर उसका बर्बाद रहा।
चलते चलते जाने कब,
वो पार जीवन के आ गया,
फिर वही शजर और वही तोता,
बैठा उस पर पा गया।
तोते से अब पूछा उसने,
मेरी मंज़िल कहां है आखिर,
कहां मेरा अंतिम ठौर है,
तोते ने फिर वही कहा उससे,
बस कुछ दूर, बस कुछ दूर,
बस कुछ दूर और है।

- आदर्श जैन

शक्कर हैं!

बातें उसकी बात नही हैं, शक्कर हैं। सोच उसे जो गज़ल कही हैं, शक्कर हैं। बाकी दुनिया की सब यादें फीकी हैं, उसके संग जो याद रही हैं, शक्कर हैं।...